SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 352
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २३५ ) कार्मणकाययोगी कृत संचितों का अन्तर कितने काल तक होता है ? एक जीव की अपेक्षा जघन्य से तीन समय कम क्षुद्रभवग्रहण और उत्कृष्ट से अंगुल के असंख्यातवें भाग मात्र असंख्यात अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी काल तक होता है। नोट-तीन पद-कृति, नोकृति और अवक्तव्य है। .४३ सयोगीजीव और भाव .०१ पंच मनोयोगी तथा पंच वचनयोगी का भाव .०२ काययोगी का भाव .०३ औदारिक काययोगी का भाव जोगाणुवादेण पंचमणजोगि-पंचवचिजोगिकायजोगि-ओरालियकायजोगीसु मिच्छादिटिप्पहुडि जाव सजोगिकेवलि त्ति ओघं । -षट् खण्ड० १ । ७ । सू ३२ । पु ५ । पृष्ठ० २१८ टीका-सुगममेदं। .०४ औदारिकमिश्र काययोगी का भाव ओरालियमिस्सकायजोगीसु मिच्छादिद्विसासणसम्मादिट्ठीणं ओघ । -षट् खण्ड० १ । ७ । सू ३३ । पु ५ । पृष्ठ० २१८ टोका-एदं पि सुगम। असंजदसम्मादिट्टि त्ति को भावो, ख इओ वा खओवसमिओ वा भावो । ___-षट् ० खण्ड० १ । ७ । सू ३४ । पु ५ । पृष्ठ० २१८ । ९ टीका-कुदो? खइय-वेदगसम्माविट्ठीणं देव-णेरइयमणुसाणं तिरिक्खमणुसेसु उप्पज्जमाणाणमुवलंभा। ओवसमिओ भावो एत्थ किग्ण परुविदो ? ण, चउग्गइउवसमसम्माविट्ठीणं मरणाभावादो ओरालियमिस्सुम्हि उवसमसम्मत्तस्सवलंभाभावा। उवसमसेडि चढंत-ओअरंतसंजदाणमुवसमसम्मत्तण मरणं अस्थि त्ति चे सच्चमत्थि, किंतु ण ते उवसमसम्मत्तेण ओरालियमिस्स कायजोगिणो होंति, देवदि मोत्तूण तेसिमण्णत्थ उप्पत्तीए अभावा। ओदइएण भावेण पुणो असंजदो। -षट् ० खण्ड ० १ । ७ । सू ३५ । पु ५ । पृष्ठ० २१९ टोका–सुगममेदं। सजोगिकेवलि ति को भावो, खइओ भावो । -~षट् • खण्ड ० १ । ७ । सू ३६ । पु ५ । पृष्ठ० २१९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016029
Book TitleYoga kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy