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________________ ( २३४ ) • १० अंतरानुगम से संचित योगी जीवों का अन्तरकाल पंचमणजोगि. पंचवचिजोगीणं गरइयभंगो । कायजोगीणमेइ दियभंगो । णवरि जहण्णमंतरं एगसमओ । ओरालियकायजोगि-ओरालिय मिस्सकायजोगीणं कदिसं चिदाणं एगजीवं पडुच्च जहणणेण एगसमओ, उक्कस्सेण तेत्तीस - सागरोवमाणि सादिरेयाणि । वेउब्वियकायजोगीणं एगजीवं पडुच्च जहणण एगसमओ, उक्कस्सेण अनंतकालमसंखेज्जपोग्गलपरियट्टा । वे उव्वियमिस्सकायजोगीणं अंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीवं पडुच्च जहणण एगसमओ, उक्कस्सेण बारसमुहुत्ताणि । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण दसवाससहस्साणि सादिरेयाणि, उक्कस्सेण अनंतकालमसंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा । आहारकायजोगि आहारभिस्सकायजोगीणं तिष्णिपवाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि । णाणाजीवं पडुच्च जहणेण एगसमओ, उक्कस्सेण वासपुधत्तं । एगजीवं पडुच्च जहणणेण अंतोमुहुत्तं, उक्कस्सेण अद्धपोग्गलपरियट्ट देणं । कम्मइयाजोगीणं कदिसं चिदाणं अंतरं केवचिरं कालादो होदि ? एगजीवं पडुच्च जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणं तिसमऊणं, उक्कस्सेण अंगुलस्स असंखेज्जदिभागो असंखेज्जाओ ओसप्पिणी उस्सप्पिणीओ । ---षट्० खण्ड ० ४ । १ । सू ६६ । पु ९ । पृष्ठ० ३१२ पांच मनोयोगी और पांच वचनयोगी जीवों की प्ररूपणा नारकियों के समान है । विशेषता इतनी है कि इनका जघन्य अन्तर एक समय होता है । औदारिककाययोगी और औदारिकमिश्रकाययोगी कृति संचित जीवों का अन्तर एक जीव की अपेक्षा जघन्य से एक समय और उत्कृष्ट से तेतीस सागरोपम से कुछ अधिक है । वैकाययोगियों का अन्तर एक जीव की अपेक्षा जघन्य से एक समय और उत्कर्ष से असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन प्रमाण अनन्तकाल है । वैकिमिश्र काययोगियों का अन्तरकाल कितने काल तक होता है । नाना जीवों की अपेक्षा जघन्य से एक समय और उत्कर्ष से बारह मुहूर्त प्रमाण अन्तर होता है । एक जीव की अपेक्षा जघन्य से दस हजार वर्षों से कुछ अधिक और उत्कर्ष से असंख्यात पुद्गल - परिवर्तन प्रमाण अनन्तकाल तक होता है | आहारककाययोगी और आहारकमिश्रकाययोगी तीनों पद वालों का अन्तर कितने काल तक होता है | नाना जीवों की अपेक्षा जघन्य से एक समय और उत्कर्ष से वर्षपृथक्त्व प्रमाण उक्त जीवों का अन्तर होता है । एक जीव की अपेक्षा जघन्य से अन्तमुहूर्त और उत्कर्ष से कुछ कम अर्धपुद्गलपरिवर्तन प्रमाण है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016029
Book TitleYoga kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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