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________________ ( २३२ ) वैयिक मिश्रका योगियों का अन्तर जघन्य एक समय होता है । क्योंकि, सब वैक्रियिक मिश्रकाययोगियों के पर्याप्तियों के पूर्ण कर लेने पर एक समय का अन्तर होकर द्वितीय समय में देवों व नारकियों में उत्पन्न होने पर वैक्रियिकमिश्रकाययोगियों का अन्तर एक समय होता है । वैक्रियिकमिश्र काययोगियों का अन्तर उत्कृष्ट बारह मुहूर्त होता है । क्योंकि देव अथवा नारकियों न उत्पन्न होने वाले जीव यदि बहुत अधिक काल तक रहते हैं तो बारह मुहूर्त तक ही होते हैं । अस्तु - यह जिन भगवान के मुख से निकले हुए वचनों से जाना जाता है । -०७ आहारककाययोगी का काल का अन्तर .०८ आहारकमिश्रकाययोगी का काल का अन्तर आहारक कायजोगी आहार मिल्सकाय जोगी सु मत्त संजदाणमंतरं सु केवचिरं कालादो होदि, णाणाजीवं पडुच्च जहणणं एगसमयं । - षट्० खण्ड ० १ । ६ । सू १७४ | पु ५ । पृष्ठ ० ९३ टीका - सुगममेदं । होदि ? टीका - एदं पि सुगममेव । उक्कस्सेण वासपुधत्तं । - षट्० खण्ड ० १ । ६ । सू १७५ । पु ५ । पृष्ठ० ९३ एगजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं, निरंतरं । टीका - तम्हि जोग-गुणंतरग्गहणाभावा । -०७ आहारककाययोगी का अन्तरकाल -०८ आहारकमिश्रकाययोगी का अन्तरकाल टीका - सुगमं । Jain Education International - षट्० खण्ड ० १ । ६ । मू १७६ | पु ५ | पृष्ठ० ९३ आहारक कायजोगि आहारमिस्सकायजोगीणमंतरं केवचिरं कालादो - षट्० खण्ड ० २ । ९ । सू २७ । पु ७ । पृष्ठ० ४८५ जहणेण एगसमयं । - षट्० खण्ड ० २ । ९ । सू २८ । पु ७ । पृष्ठ० ४८६ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016029
Book TitleYoga kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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