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________________ ( २१७ ) अधिक से अधिक असंख्यात पुद्गलपरिवर्तनप्रमाण अनन्तकाल तक जीव काययोगी रहता है। क्योंकि, अविवक्षित योग से काययोग को प्राप्त होकर और वहाँ अतिशय दीर्घकाल तक रहकर काल को करके एकेन्द्रियों में उत्पन्न हुए जीव के आवली के असंख्यातवें भाग मात्र पुद्गलपरिवर्तन भ्रमण करते हुए काययोग का काल पाया जाता है । .०३ औदारिककाययोगी और कालस्थिति ओरालियकायजोगी केचिरं कालादो होदि ? -षट्० खण्ड ० २ । २ । सू १०२ । पु ७ । पृष्ठ० १५३ टोका—सुगमं। जहणेण एगसमओ। -षट० खण्ड ० २ । २। सू १०३ । पु७ । पृष्ठ० १५३ टोका-मणजोगेण वचिजोगेण वा अच्छिय तेसिमद्धाखएण ओरालिकायजोगंगदबिदियसमए कालं काढूण जोगंतरं गदस्स एगसमयदंसणादो। उक्कस्सेण बावीसं वाससहस्साणि देसूणाणि । -षट्० खण्ड० २।२। सू १०४ । पु ७ । पृष्ठ० १५३ टोका-बावीसवाससहस्साउअपुढवीकाइएसु उप्पज्जिय सव्वजहण्णण कालेण ओरालियमिस्सद्ध गमिय पत्तिगदपढमसमयप्पहुडि जाव अंतोमुत्तूणबावीसवाससहस्साणि ताव ओरालियकायजोगुवलंभादो। औदारिककाययोगी जीव कम से कम एक समय तक रहता है। क्योंकि, मनोयोग अथवा वचनयोग के साथ रहकर उनके काल-क्षय से औदारिककाययोग को प्राप्त होने के द्वितीय समय में मरकर योगान्तर को प्राप्त हुए जीव के एक समय देखा जाता है। अधिक से अधिक बाईस हजार वर्षों तक जीव औदारिककाययोगी रहता है । क्योंकि बाईस हजार वर्ष की आयु वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होकर सर्वजघन्यकाल से औदारिकमिश्रकाल को बिताकर पर्याप्ति को प्राप्त होने के प्रथम समय से लेकर अन्तर्मुहूर्त कम बाईस हजार वर्ष तक औदारिककाययोग पाया जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016029
Book TitleYoga kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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