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________________ ( २१५ ) आहारक मिश्रकाययोगी जीव उत्कर्ष से अन्तर्मुहूर्त तक रहते हैं । अस्तु -- यहाँ पर भी पूर्व के समान संख्यात अन्तर्मुहूर्तों का संकलन करना चाहिए । ४१ योगी और कालप्ररूपणा ०१ मनोयोगी और वचनयोगी को कालस्थिति जोगाणुवादेण पंचमणजोगी पंचवचिजोगी के वचिरं कालादो होदि ? - षट्० खण्ड० २ । २ । ९६ । पु ७ । पृष्ठ० १५१ टीका- 'जोगिणो' इदि वयणादो बहुवयणणिद्दसो किण्ण कदो ? ण, पंचहं पि एयत्ताविणाभावेण एयवयणुववत्तीदो । सेसं मुगमं । जहणेण एगसमओ । - षट्० खण्ड० २ । २ । सू ९७ । पु ७ । पृष्ठ० १५१ टीका - मणजोगस्स ताव एगसमयपरूवणा कोरदे । तं जहा - एगो कायजोगेण अच्छिदो कायजोगद्वाए खएण मणजोगे आगदो, तेणेगसमय मच्छिय बिदियसमये मरिय कायजोगी जादो । लद्धो मणजोगस्स एगसमओ । अधवा कायजोगद्वाखएण मणजोगे आगदे बिदियसमए वाघादिदस्स पुणरवि कायजोगो चेव आगदो । लद्धो बिदियपयारेण एगसमओ । एवं सेसाणं चदुण्हं मणजोगाणं पंचहं वचिजोगाणं च एगसमयपरूवणा दोहि पयारेहि णादण कायव्वा । उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं । - षट्० खण्ड ० २ । २ । ९८ । पु ७ । पृष्ठ० १५२ टीका - अणप्पिदजोगादो अप्पिदजोगं गंतॄण उक्कस्सेण तत्थ अंतोमुहुत्ताagri पsि विरोहाभावादो । योगमार्गणानुसार जीव पांच मनोयोगी और पांच वचनयोगी कितने काल तक रहते हैं । " जोगिणो" इस प्रकार के वचन से यहाँ बहुवचन का निर्देश नहीं किया । क्योंकि पांचों के ही एकत्व के साथ अविनाभाव होने से यहाँ एकवचन उचित है । कम से कम एक समय तक जीव पांच मनोयोगी और पांच वचनयोगी रहते हैं । अस्तु - प्रथमतः मनोयोग के एक समय की प्ररूपणा की जाती है । वह इस प्रकार - एक जीव काययोग में स्थित था, वह काययोगकाल के क्षय मनोयोग में आया, उसके साथ एक समय रहकर व द्वितीय समय में मरकर काययोगी हो गया । इस प्रकार मनोयोग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016029
Book TitleYoga kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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