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________________ ( १९७ ) क्योंकि, कपाटसमुद्घात में एक समय को छोड़कर बहुत समय रहने का अभाव है अतः उक्त प्रकार के जीवों के बहुत समय नहीं पाये जाते हैं। शंका-ये फिर एक ही समय के जघन्य और उत्कृष्ट का व्यपदेश कैसे हुआ। समाधान---यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि कनिष्ट भी है और ज्येष्ठ भी है । 'यही हमारा पुत्र है' इस प्रकार का लोक में व्यवहार पाया जाता है अतः एक में भी जघन्य और उत्कृष्ट का व्यपदेश हो सकता है । योग की स्थिति ( योगकालः ) औदारिकमिश्रस्य अन्तमुहूर्तः । -गोजी० गा० ६७१ । टीका औदारिकमिश्रकाययोग का काल अन्तर्मुहूर्त है। .०५ वैक्रिय काययोगी जीवों की कालस्थिति वेउव्वियकायजोगीसु मिच्छादिट्ठी असंजदसम्मादिट्ठी केवचिरं कालादो होंति, गाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा। -षट्० खण्ड ० १ । ५ । सू १९६ । पु ४ । पृष्ठ० ४२५ टोका-कुदो ? सव्वद्धासु वेउन्वियकायजोगिमिच्छादिट्ठि-असंजदसम्मादिद्विसंताणवोच्छेदाभावा। एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ। --षट् खण्ड ० १ । ५ । सू १९७ । पु ४ । पृष्ठ० ४२५ टोका-तं जधा-एगो मिच्छादिट्ठी मण-वचिजोगेसु अच्छिदो अद्धाखएण वेउव्वियकायजोगी जादो। एगसमयं वेउब्वियकाय जोगेण दिट्ठो। विदियसमए मदो अण्णजोगं गदो। मरणेण विणा सम्मामिच्छादिट्ठी असंजदसम्मादिट्ठी वा जादो। अधवा सासणसम्मादिट्ठी सम्मामिच्छाविट्ठी असंजदसम्मादिट्ठी वा वेउब्वियकायजोगद्धाए एगो समओ अत्थि त्ति मिच्छादिट्ठी जादो। विदियसमए अण्णजोगं गदो। वाघादेण एगसमओ णस्थि, विरुद्धकायजोगादो। एवमसंजदसम्माविट्ठिस्स वि एगसमयपरुवणा तोहि पयारेहि कायव्वा । उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं। -षट्० खण्ड० १। ५ । सू १९८ । पु ४ । पृष्ठ० ४२५ । ६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016029
Book TitleYoga kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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