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________________ ( १९४ ) क्योंकि, औदारिक मिश्र काययोगियों में मिथ्यादृष्टियों की परम्परा के विच्छेद का सर्वं कालों में अभाव है । एक जीव की अपेक्षा औदारिक मिश्रकाययोगी मिथ्यादृष्टि जीवों का जघन्य काल तीन समय कम क्षुद्रभवग्रहणप्रमाण है । १८३ जैसे एकेन्द्रिय जीव अधोलोक में स्थित और क्षुद्रभवग्रहणप्रमाण आयुस्थिति वाले सूक्ष्म-वायुकायिकों में तीन विग्रह करके उत्पन्न हुआ । वहाँ पर तीन समय कम क्षुद्रभवग्रहणकाल तक लब्ध्यपर्याप्त हो, जीवित रह कर मरा । पुनः विग्रह करके कार्मणकाययोगी हो गया । इस प्रकार से तीन समय कम क्षुद्रभवग्रहणप्रमाण औदारिकमिश्र काययोगी का जघन्य काल सिद्ध हुआ । उक्त जीवों का उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । १८४ जैसे - कोई एक जीव लब्ध्यपर्याप्तकों में उत्पन्न होकर संख्यात भवग्रहणप्रमाण उनमें परिवर्तन करके पुन: पर्याप्तकों में उत्पन्न होकर औदारिककाययोगी हो गया । इन सब संख्यात भवों के ग्रहण करने का काल मिल करके भी मुहूर्त के अंतगर्त ही रहता है, अधिक नहीं होता है | arrafमिश्र काययोगी सासादन सम्यग्दृष्टि जीव नाना जीवों की अपेक्षा जघन्य से एक समय होते हैं । १८५ जैसे - सात, आठ जन अथवा बहुत से सासादन सम्यग्दृष्टि, अपने योग के काल में एक समय कम अवशेष रहने पर औदारिक मिश्रकाययोगी हो गये । उसमें एक समय रह करके द्वितीय समय में मिथ्यात्व को प्राप्त हुए । इस प्रकार से औदारिकमिश्रकाययोग के साथ सासादन सम्यग्दृष्टियों का एक समय लब्ध हुआ । उक्त जीवों की उत्कृष्ट काल पल्योपम के असंख्यातवें भाग प्रमाण है । १८६ जैसे - सात, आठ जन, अथवा बहुत से सासादन सम्यग्दृष्टि जीव औदारिकमिश्रकाययोगी हुए । सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थान के साथ अंतर्मुहूर्त काल रह करके पीछे वे मिथ्यात्व को प्राप्त हुए । उसी समय में ही अन्य दूसरे सासादन सम्यग्दृष्टि जीव औदारिकमिश्रकाययोगी हुए । इस प्रकार से एक, दो, तीन को आदि करके उत्कर्ष से पत्योपम के असंख्यातवें भाग मात्र वार सासादन सम्यग्दृष्टि जीव औदारिकमिश्रकाययोग को प्राप्त करना चाहिए। इसके पश्चात् नियम से अन्तर हो जाता है। इस प्रकार से यह सब मिलाया गया काल पल्योपम के असंख्यातवें भाग मात्र होता है । एक जीव की अपेक्षा उक्त जीवों का जघन्यकाल एक समय है । १८७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016029
Book TitleYoga kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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