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________________ ( १८० ) शंका-कार्मणकाययोगी जीवराशि सर्वलोक में कैसे रहती है। समाधान-नहीं, क्योंकि, कार्मणकाययोगी राशि के अनन्त सर्वजीवराशि के असंख्यांतवें भाग होने से उसमें कोई विरोध नहीं है । आत्मप्रवृत्तस्संकोचविकोचो योगः, मनोवाक्कायावष्टंभबलेन जीवप्रदेशपरिस्पन्दो योग इति यावत् । -षट् खण्ड ० २, १, ३ । सू २ । पु ७ । पृष्ठ० ६, ७ । टीका आत्मा की प्रवृत्ति से उत्पन्न संकोच-विकोच का नाम योग है। अर्थात् मन, वचन और काय के अवलम्बन से जीव प्रदेशों के परिस्पन्दन होने को योग कहते हैं। •३९ सयोगी जीवों की काल स्थिति .०२ पंच मनोयोगी-पंच वचनयोगी की कालस्थिति जोगाणुवादेण पंचमणजोगि-पंचवचिजोगीसुमिच्छादिट्ठो असंजदसम्मादिट्ठी संजवासजदा पमत्तसंजदा अप्पमत्तसंजदा सजोगिकेवली केवचिरं कालादो होति, णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा। -षट्० खण्ड० १। ५ । सू १६२ । पु ४ । पृष्ठ० ४०९ टोका-कुदो ? मणजोग-वचिजोगेहि परिणमणकालादो तदुवक्कमणकालंतरस्स थोवत्तादो। एगजीवं पडुच्च जहण्णण एगसमयं । ----षट् खण्ड ० १ । ५ । सू १६३ । पु ४ । पृष्ठ० ४०९ । १२ - टोका-एदस्स सुत्तस्स अत्थणिच्छयसमुप्पायण8 मिच्छादिट्ठिआदिगुणट्ठागाणि अस्सिदूण एगसमयपरूवणा कीरदे। एत्थ ताव जोगपरावत्ति-गुणपरावत्तिमरण-वाघादेहि मिच्छत्तगुणट्ठाणस्स एगसमओ परूविज्जदे। तं जधा-एक्को सासणो सम्मामिच्छादिट्टी असंजदसम्मादिदी संजदासंजदो पमत्तसंजदो चा मणजोगेण अच्छिदो। एगसमओ मणजोगद्धाए अत्थि ति मिच्छत्तं गदो। एगसमयं मणजोगेण सह मिच्छत्तं दिट्ठ। विदियसमए मिच्छादिट्ठी चेव, किंतु वचिजोगी कायजोगी वा जादो। एवं जोगपरावत्तीए पंचविहा एयसमयपरूवणा कवा। कधं समयभेदो? सासणादिगुणट्ठाणपच्छाकधत्तेण। गुणपरावत्तीए एगसमओ बुच्चदे। तंजहा एक्को मिच्छादिट्ठी वचिजोगेण कायजोगेण वा अच्छिदो। तस्स वचिजोगद्धासु खोणासु मणजोगो आगदो। मणजोगेण सह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016029
Book TitleYoga kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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