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________________ ( १७३ ) अस्तु यहाँ वर्तमानकाल की अपेक्षा स्पर्शन का निरूपण क्षेत्र प्ररूपणा के समान है । अतीतकाल की अपेक्षा चार लोकों के असंख्यातवें भाग और मानुषक्षेत्र के संख्यातवें भाग का स्पर्श किया है । विहारवत्स्वस्थान उनके नहीं होता है । आहारक मिश्रकाययोगी जीवों के समुद्घात और उपपादपद नहीं होते हैं । क्योंकि वे अत्यन्ताभाव से निराकृत है । - ०९ कार्मण काययोगो का क्षेत्र - स्पर्श कम्मइयकायजोगीहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? -षट्० खण्ड० २ । ७ । लु १२७ । पु ७ । पृष्ठ ० ४१९ । २० टोका - सुगमं । सव्वलोगो । षट्० खण्ड ० २ । ७ । सू १२८ । पु ७ । पृष्ठ० ४२० टीका - एदं पि सुगमं । काकाययोगी जीवों द्वारा सर्वलोक स्पृष्ट है । • ३८ सयोगी जीव कितने क्षेत्र में • ०२ मनोयोगी और वचनयोगी कितने क्षेत्र में जोगाणुवादेण पंचमणजोगी पंचवचिजोगी सत्थाणेण समुग्धायेण केवडिखेत्ते ? Jain Education International - षट्० खण्ड० २ । ६ । सू ५२ । पुं ७ | पृष्ठ० ३४० टीका - एत्थ सत्थाणे दो वि सत्याणाणि अस्थि, समुग्धादे वेयण- कसायवे उव्विय-तेजाहार-मारणंतियसमुग्धादा अस्थि, उट्ठाविदउत्तरसरीराणं मारणंतिगदाणं पि मण - वचिजोगसंभवस्स विरोहाभावादो । उववादो णत्थि, तत्थ कायजोगं मोत्तूणण्णजोगाभावादो । लोगस्स असंखेज्जदिभागे । - षट्० खण्ड० २ । ६ । सू ५३ । पुं ७ | पृष्ठ० ३४० । १ टीका - एदस्सत्थो वुच्चदे । तं जहा - सत्याणसत्याण-विहारवदिसत्याणarr - कसाय- बेउब्वियसमुग्धादगदा एदे दस वि तिन्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागे, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणे ; तेजाहारसमुग्धादगदा चदुण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे, अड्डाइज्जस्स संखेज्जदिभागे ; मारणंतिय समुग्धा For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016029
Book TitleYoga kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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