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________________ ( ११३ ) १९ द्वीन्द्रिय पर्याप्तक के जघन्य योग असंख्यातगुण बीइदियपज्जत्तयस्स जहण्णओ जोगो असंखेज्जगुणो॥ टोका—गुणगारो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो। एत्थ णिव्वत्तिपज्जत्तजहण्णपरिणामजोगो घेत्तन्वो। -षट्० खण्ड ४ । २ । ४ । सू १६३ । पु० १० । पृष्ठ. ४०१ उससे द्वीन्द्रिय पर्याप्तक का जघन्य योग असंख्यातगुणा है। गुणकार पल्योपम का असंख्यातवां भाग है, यहाँ निर्वृत्तिपर्याप्त के जघन्य परिणाम योग से ग्रहण करना चाहिए। •२० नीन्द्रिय पर्याप्तक के जघन्य योग असंख्यातगुण तोइदियपज्जत्तयस्स जहण्णओ जोगो असंखेज्जगुणो॥ टीका-गुणगारो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो। उवरि सम्वत्थ गुणगारो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो चेव होवि त्ति घेत्तव्वं । -षट्० खण्ड ४ । २ । ४ । सू १६४ । पु. १० । पृष्ठ० ४०१ उससे त्रीन्द्रिय पर्याप्तक का जघन्य योग असंख्यातगुणा है । गुणकार पल्योपम का असंख्यातवां भाग है । आगे जब जगह गुणकार पल्योपम का असंख्यातवां भाग ही होता है। ऐसा ग्रहण करना चाहिए। •२१ चतुरिन्द्रिय पर्याप्तक के जघन्य योग असंख्यातगुण ___चरिदियपज्जत्तयस्स जहण्णओ जोगो असंखेज्जगुणो॥ टोका-सुगमं। -षट् खण्ड ४ । २ । ४ । सू १६५ । पु० १० । पृष्ठ० ४०१ उससे चतुरिन्द्रिय पर्याप्तक का जघन्य योग असंख्यातगुणा है । •२२ असंज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तक के जघन्य योग असंख्यातगुण असण्णिपंचिदियपज्जत्तयस्स जहण्णओ जोगो असंखेज्जगुणो॥ टीका-सुगमं । -षट्० खण्ड ४ । २ । ४ । सू १६६ । पु. १० । पृष्ठ० ४.१ ४०२ उससे असंज्ञी पर्याप्तक का जघन्य योग असंख्यातगुणा है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016029
Book TitleYoga kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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