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________________ ( ११२ ) आगे के सूत्रों में भी जहाँ अपर्याप्तक पद आया है वहाँ निर्वृत्त्यपर्याप्तक के उत्कृष्ट एकांतानुवृद्धियोग को ही ग्रहण करना चाहिए । - १५ त्रीन्द्रिय अपर्याप्तक के उत्कृष्ट योग असंख्यातगुण तीइ दियअपज्जत्तयस्स उक्कस्सजोगो असंखेज्जगुणो ॥ टीका- गुणगारो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो । - षट्० खण्ड ४ । २ । ४ । सू १५९ । पु० १० । पृष्ठ ० ४०० उससे त्रीन्द्रिय अपर्याप्तक का उत्कृष्ट योग असंख्यातगुणा है । गुणकार पल्योपम का असंख्यातवां भाग है । • १६ चतुरिन्द्रिय अपर्याप्तक के उत्कृष्ट योग असंख्यातगुण चदुरिदियअपज्जत्तयस्स उक्कस्सजोगो असंखेज्जगुणो ॥ टीका- गुणगारो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो । कारणं सुगमं । - षट्० खण्ड ४ । २ । ४ । सू १६० । पु० १० । पृष्ठ ० ४०० उससे चतुरिन्द्रिय अपर्याप्तक का उत्कृष्ट योग असंख्यातगुणा है । गुणकार पल्योपम का असंख्यातवां भाग है । -१७ असंज्ञी पंचेन्द्रिय अपर्याप्तक के उत्कृष्ट योग असंख्यातगुण असण्णिपचदिय अपज्जतयस्स उक्कस्सजोगो असं खेज्जगुणो ॥ टीका- गुणगारो पलिदोवमस्स असं खेज्जदिभागो । कारणं सुगमं । - षट् खण्ड ४ । २ । ४ । सू १६१ । पु० १० पृष्ठ ० ४० १ उससे असंज्ञी पंचेन्द्रिय अपर्याप्तक का उत्कृष्ट योग असंख्यातगुणा है । गुणकार पल्योपम का असंख्यातवां भाग है । • १८ संज्ञी पंचेन्द्रिय अपर्याप्तक के उत्कृष्ट योग असंख्यातगुण सणिचिदिय अपज्जत्तयस्स उक्कस्सओ जोगो असंखेज्जगुणो ॥ टीका- गुणगारो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो । - षट्० खण्ड ४ । २ । ४ । सू १६२ । पु० १० । पृष्ठ० ४० १ उससे संज्ञी पंचेन्द्रिय अपर्याप्तक का उत्कृष्ट योग असंख्यातगुणा है । गुणकार पल्योपम का असंख्यातवां भाग है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016029
Book TitleYoga kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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