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________________ ( १०४ ) '५४ सयोगी वाणव्यंतरदेव यावत् वैमानिकदेव और समवसरण की अपेक्षा भवसिद्धिक-अभवसिद्धिक वाणमंतर-जोइसिय-वेमागिया जहा असुरकुमारा। -भग. श ३० । उ १ । सू३४ सयोगी-मनोयोगी-वचनयोगी व काययोगी वाणव्यंतर यावत् वैमानिकदेव क्रियावादी भवसिद्धिक है, अभवसिद्धिक नहीं है। अक्रियावादी, अज्ञानवादी, विनयवादी भवसिद्धिक भी है, अभवसिद्धिक भी है। . '५५ सयोगी अनन्तरोपपन्नक नारकी यावत् वैमानिकदेव और समवसरण सलेस्सा णं भंते ! अणंतरोववन्नगा रइया कि किरियावाई ? एवं चेव, एवं जहेव पढमुद्देसे णेरइयाणं वत्तव्वया तहेव इहवि भाणियवा। गवरं जं जस्स अस्थि अणंतरोववण्णगाणं णेरइया तं तस्स भाणियध्वं । एवं सव्वजीवाणं जाव वेमाणिया। गवरं अणंतरोववष्णगाणं जं हिं अत्थि तं तहि भाणियव्वं । -भग० श ३० । उ २ । सू १-२ ___ सयोगी व काययोगी अनंतरोपपत्रक नारकी क्रियावादी, अक्रियावादी, विनयवादी और अज्ञानवादी है। इसी प्रकार यावत वैमानिकदेव तक सब जीवों के संबंध में जानना। लेकिन अनंतरोपपत्रक जीवों में जिसमें जो संभव हो उसमें वह कहना। .५६ सयोगी अनन्तरोपपन्नक नारकी और समवसरण की अपेक्षा आयुष्यबंध (सजोगी गंभंते ) x x x। किरियावाई अणंतरोववण्णगा रइया किचि वि आउयं पकरेइ जाव अणागारोवउसति । एवं जाव वेमाणिया, णवरं जं जस्स अस्थि तं तस्स भाणियव्यं । -भग• श ३० । उ २ । सू ४ सयोगी-काययोगी अनन्तरोपपत्रक क्रियावादी किसी भी आयुष्य का बंध नहीं करते हैं। इसी प्रकार अक्रियावादी, अज्ञानवादी व विनयवादी भी किसी प्रकार का आयुष्य नहीं बांधते हैं। इसी प्रकार यावत वैमानिकदेवों तक कहना लेकिन जिसमें जो संभव हो उसमें वह कहना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016029
Book TitleYoga kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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