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________________ सयोगी यावत् काययोमी नारकी क्रियावादी भी हैं, अक्रियावादी, विनयवादी व अज्ञानवादी भी है। •४ सयोगी असुरकुमार यावत् स्तनितकुमार देव और समवसरण जहा परइया एवं जाव थणियकुमारा -भम० श३० । उ १ । सू८ सयोगी यावत् काययोगी असुरकुमार यावत् स्तनितकुमार देव क्रियावादी भी होते हैं, अज्ञानवादी, विनयवादी और अक्रियावादी भी होते हैं। "५ सयोगी पृथ्वीकायिक जीव और समवसरण .६ से १२ सयोगी अपकायिक यावत् चतुरिन्द्रिय जीव और समवसरण पुढधिकाइयाणं भंते ! कि किरियावाई पुच्छा । गोयमा! णो किरियावाई, भकिरियावाई वि, अण्णाणवाई वि, णो वेणइयवाई। एवं पुढविकाइणं जं अस्थि तत्थ सव्वत्थ वि एयाई दो मज्झिलाई समोसरणाई जाव अणागारोवउत्ता वि, एवं जाव चरिदियाण । -भग श ३० । उ१। सू ९ सयोगी काययोगी पृथ्वीकायिकजीव क्रियावादी और विनयवादी नहीं है, अक्रियावादी और अज्ञानवादी है। इसी प्रकार अपकायिकजीव से चतुरिन्द्रियजीव क्रियावादी और विनयवादी नहीं है, भक्रियावादी और अज्ञानवादी है। नोट-अनेक प्रकार के परिणामवाले जीव जिसमें हो उसे समवसरण कहते हैं अर्थात् भिन्न-भिन्न मतों एवं दर्शनों को समवसरण कहते हैं। विनयवाद के योग्य परिणाम न होने से विनयवादी नहीं होते हैं। १३ सयोगी पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक जीव और समवसरण पाँचविय - तिरिक्ख - जोगिया जहा जीवा। गवरं जं अस्थि तं भाणियब। -भग श ३० । उ १ । सू ९ सयौगी-मनोयोगी-वचनयोगी-काययोगी पंचेन्द्रिय सियंचयोनिक जीव औधिक जीवों की तरह क्रियावादी भी हैं, अक्रियावादी अज्ञानवादी और विनयवादी भी है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016029
Book TitleYoga kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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