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________________ ( ८५ ) अपेक्षा से किया गया है, क्योंकि कुछ मिथ्यादृष्टि वैक्रियलब्धिसम्पन्न विद्याधर अन्यान्य भाव सेविकुर्वा में रहते हैं । मूल टीकाकार ने भी कहा है- मनुष्य वैक्रियमिश्रशरीरकायप्रयोगी बहुवचन की अपेक्षा से विद्याधर आदि के सदैव विकुर्वणा करते रहने के कारण उपलब्ध होते हैं । अथवा एक समय में एक औदारिकमिश्रशरीर का प्रयोगी होता है (१), अथवा एक समय में अनेक ( बहुवचन) औदारिकमिश्रशरीर कायप्रयोगी होते हैं (२), अथवा कदाचित् एक आहारकशरीर कायप्रयोगी उपलब्ध होता है ( ३ ), अथवा कदाचित् अनेक ( बहुवचन ) आहारकशरीर कायप्रयोगी उपलब्ध होते हैं (४), अथवा कदाचित् एक आहार मिश्र शरीर कायप्रयोगी उपलब्ध होता है (५), अथवा कदाचित् अनेक ( बहुवचन ) आहारकमिश्रशरीर कायप्रयोगी उपलब्ध होते हैं ( ६ ), अथवा कदाचित् एक कार्मणशरीर कायप्रयोगी उपलब्ध होता है (७), अथवा कदाचित् अनेक ( बहुवचन ) कार्मणशरीर कायप्रयोगी उपलब्ध होते हैं । ये आठ भंग होते हैं । arraf शरीर कायप्रयोगी तथा कार्मणशरीर कायप्रयोगी कदाचित् सर्वथा नहीं होते हैं, क्योंकि इनमें बारह मुहूर्त के उपपात का विरहकाल होता है । अवहारकशरीरी तथा आहारकमिश्रशरीर कदाचित् होते हैं यह पहले ही कहा जा चुका है । इस प्रकार Harfreeदि के अभाव में ग्यारह पदों का बहुवचन रूप भंग होता है, ओदारिकमिश्र पद से एकवचन और बहुवचन रूप दो भंग होते हैं, इसी प्रकार दो भंग आहारक पद से, दो भंग आहारकमिश्र पद से, दो भंग कार्मण पद से होते हैं। एक-एक के संयोग से आठ भंग होते हैं । • ९ २ सयोगी मनुष्य के विभाग ( युग्म भंग ) अहवेगे य ओरालियमोसासरीर कायप्पओगी य आहारगसरीरकायप्पओगी म १ अहवेगे य ओरालियमीसासरीरकायप्पओगी य आहारग- सरीरकायप्पओगिणो य २ अहवेगे य ओरालियमीसासरीरकायप्प ओगिणो य आहारगसरीरकायपओगी य ३ अहवेगे य ओरालियमी सासरीरकायप्पओगिणो य आहारगसरीरकायप्पओगिणो य ४ एवं एते चत्तारि भंगा, अहवेगे य ओरालियमीसासरीरकायप्पओगी य आहारगमीसासरीरकायप्पओगी य १ अहवेगे य ओरालियमीसासरीरकायओगी य आहारगमोसरीरकायप्पओगिणो य २ अहवेगे य ओरालियमीसासरी कायपओगिणो य आहारगमी सासरीरकायप्पओगी य ३ अहवेगे य ओरालियमीसासरीरकायप्पओगिणो य आहारगमी सासरीरकायप्प ओगिणो य ४ चत्तारि भंगा, अहवेगे य ओरालियमीसासरीरकायप्पओगी य कम्मासरीरकायप्पओगी य १ अहवेगे य ओरालियमी सासरीरकायप्पओगी य कम्मासरीरकायप्पओगिणो य २ अहवेगे य ओरालियमी सासरी रकाय प्पओगिणोय कम्मासरी रकाय प्पओगीय ३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016029
Book TitleYoga kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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