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________________ ( ५७ ) •२ केवली समुद्घात के बाद योग की प्रवृत्ति से गं भंते । तहासमुग्धायगते सिज्झति बुज्झइ मुच्चइ परिणिव्वाइ सव्वदुक्खांणं अंतं करेति ? गोयमा! णो इण? सम8, से णं तओ पडिमियत्तति, ततोपडिनियतित्ता ततो पच्छा मणजोगं पि जुजति, वइजोगं पि जुजति, कायजोगं पि जुजति । २१७४ __मणजोग जुजमाणे कि सच्चमण जोगं जुजति मोसमण जोगं जुजति सच्चामोसमणजोगं जुजति असच्चामोसमणजोगं जुजति ? गोयमा! सच्च मणजोगं जुजति, णो मोसमणजोगं जुजति णो संच्चामोसमणजोगं जुजति, असच्चामोसमण जोगं पि जुजइ। वयजोगं जुजमाणे कि सच्चवइजोगं जुजति मोसवइ जोगं जुजति सच्चामोसवइजोगं जुजति असच्चामोसवइजोगं जुजति ? गोयमा! सच्चवइजोगं जुजइ, णो मोसवइजोगं जुजइ णो सच्चामोसवइ जोगं जुजइ, असच्चामोसवइजोगं पि जुजइ। कायजोगं जुजमाणे आगच्छेज्ज वा गच्छेज्ज वा चिट्ठज्ज वा णिसीएज्ज वा तुयज्ज वा उल्लंघेज्ज वा पलंघेज्जं वा पाडिहारियं पीढ फलग-सेज्जा संथारंगं पच्चप्पिणेज्जा। २१७४ -पण्ण० पद ३६ -ओव० सू० १७७ से १८० भन्ते ! क्या कोई समुद्घात गत ( समुद्घात में स्थित रहते हुए ही। ) सिद्ध होते हैं ? बुद्ध होते हैं ? मुक्त होते हैं ? परिनिर्वृत्त होते हैं ? सब दुःखों का अंत करते हैं ? हे गौतम यह बात नहीं है। समुद्घात से प्रतिनिर्वृत्त होते हैं। यहाँ अर्थात् इस मनुष्य लोकगत शरीर में स्थित होते हैं । फिर मनोयोगी भी होता है, वचनयोगी भी होता है और काययोग भी होता है। मनोयोग में संलग्न होते हुए सस्य मनोयोग की क्रिया करते हैं। असत्य मनोयोग की और सत्यमृषा मनोयोग की क्रिया नहीं करते हैं। असत्य-अमृषा मनोयोग की भी क्रिया करते हैं। वचनयोग की क्रिया में प्रवृत्ति होते हुए सत्य वचनयोग की प्रवृत्ति करते हैं। मृषावचनयोग की और सत्य-मृषावचनयोम की प्रवृत्ति नहीं करते हैं। असत्य-अमृषा वचनयोग की भी प्रवृत्ति करते हैं। टिप्पण-मनःपर्यवज्ञानी या अनुत्तर विमानवाद्यी देवों के द्वारा मन से पूछे गये प्रश्नों का उत्तर देने के लिए केवली भगवान् मनोयोग की प्रवृत्ति कहते हैं और जीवाषि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016029
Book TitleYoga kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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