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________________ कायजोगेणं भंते ! जुजमाणे किं ओरालियसरीरकायजोग जुजति ओरालियमोसासरीरकायजोगंजु जति ? कि वेउव्वियसरीरजोगं जुजति वेउविमीसासरीर कायजोगं जुजति ? कि आहारगसरीरकायजोगं जुजइ आहारगमीसासरीरकायजोगं जुजति ? कि कम्मगसरीर कायजोगं जुजइ ? गोयमा ! ओरालियसरीरकायजोगपि जुजति ओरालिमीसासरीरकायजोगं पि जुजइ, णो वेउब्वियसरीरकायजोगं जुजति णो वेउव्वियामीसासरीर कायजोगं जुनति, णो आहारगसरीरकायजोगं जुजति णो आहारगमीसासरीरकायजोगं जुजति, कम्मगसरीरकायजोगं पि जुजति, पढमऽअट्ठमेसु समएसु ओरालियसरीरकाय जोगं जुजति, बितियं-छट्ठ-सतमेसु समएसु ओरालियमीसगसरीरकायजोगं गुजति, ततिय-चउत्थपंचमेसु समएसु कम्मगसरीरकायजोग जुजति । २१७३ – पण्ण• पद ३६, ओव० सू० १७४/१७६ __ केवलि समुद्घात का स्वरूप-आवर्जीकरण असंख्यात समय के अन्तमुहूर्त का होता है। उदीरणावलिका में कर्म के प्रक्षेप की क्रिया को आवर्जीकरण कहते हैं। केवलि समुद्घात आठ समय की होती है। पहले समय में ऊँचे और नीचे लोकांतगामी अपने जीव प्रदेशों से, ज्ञानायोग से अपने शरीर जीतने मोटे भी दंडाकार बनाते हैं। दूसरे समय में दंडवत् बने हुए आत्मप्रदेशों से किवाड़ की तरह आजु-बाजू पूर्वापर दिशा में फैलाते हैं। तीसरे समय में कपारवत् बने हुए आत्मप्रदेशों से दक्षिण-उत्तर दिशा में फैलाते हैं जिससे मथानी जैसा आकार हो जाता है। चौथे समय में लोक शिखर सहित मन्थान के आन्तरों को पूरते हैं। पांचवें समय में मथान के आन्तरों के पूरक लोक ( आ:मप्रदेशों ) से संहृत करते हैं अर्थात् मंथानवत् हो जाते हैं। छ8 समय में मंथानवत् ( दक्षिणोत्तर दिशावर्ती ) आत्मप्रदेशों को संहृत करके कपाटवत् स्थित हो जाते हैं। सातवें समय में कपाटवत (पूर्व-पश्चिमवर्ती ) आत्मप्रदेशों को संहृत करके, दंडस्थ करते हैं और आठवें समय में दंडवत् ( ऊपर-नीचे वर्ती ) आत्मप्रदेशों को सहृत करते हैं। इसके बाद शरीरस्थ हो जाते हैं। समुद्घात को प्राप्त केवली के मनोयोग की क्रिया नहीं होती है, वचनयोग की क्रिया नहीं होती है, किन्तु काययोग की क्रिया होती है। काययोग की क्रिया करते हुए औदारिक शरीर काययोग भी होता है, औदारिकमिश्र काययोग भी होता है। वैक्रिय शरीर काययोग, वैक्रियमिश्र काययोग, आहारक शरीर काययोग, आहारक मिश्र काययोग नहीं होता है। कार्मण शरीर काययोग होता है। पहले और आठवें समय में औदारिक शरीर काययोग होता है। दूसरे, छ8 और सातवें समय में औदारिकमिश्र शरीर काययोग होता है और तीसरे, चौथे और पांचवें समय में कार्मणशरीर काययोग होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016029
Book TitleYoga kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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