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________________ ( ४० ) ११ - कोई सयोगी जीव समान आयु वाले हैं और समान उत्पन्न होते हैं । २ - कई सयोगी जीव समान आयु वाले हैं किन्तु विषम ( भिन्न-भिन्न समय में ) उत्पन्न होते हैं । ३ – कई सयोगी जीव विषम आयु वाले हैं और सब एक साथ उत्पन्न होते हैं और कितनेक सयोगी जीव विषम आयु वाले हैं और विषम उत्पन्न होते हैं । १ - जो समान आयु वाले और समान उत्पन्न होते हैं के पाप कर्म का भोग एक साथ प्रारम्भ करते हैं, और एक साथ समाप्त करते हैं । २ - जो समान आयु वाले और विषम उत्पन्न होते हैं वे पाप कर्म का योग एक साथ प्रारम्भ करते हैं और भिन्न समय में समाप्त करते हैं । ३ -जो विषम आयु वाले और समान उत्पन्न होते हैं वे पाप कर्म का योग भिन्न समय में प्रारम्भ करते हैं और एक साथ समाप्त करते हैं । ४ - जो विषम आयु वाले और विषम उत्पन्न होते हैं वे पाप कार्य का योग भिन्न समय में प्रारम्भ करते हैं और भिन्न समय में समाप्त करते हैं । • २० सयोगी नारकी और कर्म वेदन का प्रारम्भ और समाप्ति रइया नं भंते ? पावं कम्म कि समायं पट्ठविसु समायं निट्ठविसु पुच्छा। गोमा ! अत्थेगइया समायं पट्टवसु एवं जहेव जीवाणं तहेव भाणियवं नाव अणागारोवउत्ता । एवं जाव बेमाणियाणं जस्स जं अस्थि तं एएणं चेव कमेण भाणियब्बं । - भग० श २९ । उ १ सू ४ सयोगी-मनो योगी क यावत् वैमानिक तक जिस प्रकार औधिक जीवों की वक्तव्यत्ता कहीं उसी प्रकार वचन योगी व काय योगी नारकी की वक्तव्यत्ता कहनी चाहिए। जानना । जिसके जो जो योग हो वह वह योग कहना | नोट -- पाप कर्म को भोगने का प्रारम्भ और समाप्ति के लिए सम काल और विषम काल की अपेक्षा चौभंगी कहीं है । वह चौभंगी सम आयु और विषम आयु और सम उत्पत्ति और विषम उत्पत्ति वाले जीवों की अपेक्षा घटित होती है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016029
Book TitleYoga kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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