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________________ ( ३५ ) जीव जिन द्रव्यों को मनो योग रूप में ग्रहण करता है वह स्थित द्रव्यों को ग्रहण करता है, अस्थित द्रव्यों को नहीं ( कार्मण शरीर की तरह ) पर नियम से छहों दिशाओं से आये हुए द्रव्यों को ग्रहण करता है । इसी प्रकार वचन योग के विषय में कहना चाहिए । जीव जिन द्रव्यों को काय योग रूप से ग्रहण करता है वह स्थित द्रव्यों को भी, अस्थित द्रव्यों को भी ग्रहण करता है । ( औदारिक शरीर की तरह ) वह उन द्रव्य को भी द्रव्य से भी, क्षेत्र से, काल से व भाव से भी ग्रहण करता है । वह द्रव्य से अनंत प्रदेशी द्रव्यों को ग्रहण करता है, क्षेत्र से असंख्य प्रदेशावगाढ़ द्रव्यों को ग्रहण करता है xxx । निर्व्याघात से छओं दिशाओं से और व्याघात हो तो कदाचित् तीन, कदाचित् चार और कदाचित् पांच दिशाओं से आये हुए पुद्गलों को ग्रहण करता है । ( देखो पण्ण० प० २८ ) । नोट - जितने क्षेत्र में जीव रहा हुआ है उस क्षेत्र के अन्दर रहे हुए जो पुद्गल द्रव्य है, वे स्थित द्रव्य कहलाते हैं और उससे बाहर के क्षेत्र में रहे हुए पुद्गल द्रव्य अस्थित द्रव्य कहलाते हैं । वहाँ से खींचकर जीव उनको ग्रहण करता है । इस विषय में किन्हीं आचार्यों की यह मान्यता है कि जो गति रहित द्रव्य है वे स्थित द्रव्य कहलाते हैं और जो गति सहित द्रव्य है वे 'अस्थित द्रव्य' कहलाते हैं । • १४ सयोगी जीव और योग द्रव्य का ग्रहण रइया अजीवदव्वा परिभोगत्ताए हव्वमागच्छंति, णो अजीवदव्वाणं रइयाप ० हव्वमा गच्छन्ति । से केणट्टेण० ? गोयमा ! णेरइया अजीवदव्वे परियाइयंति, अजीवदव्वे परियाइइत्ता xxx मणजोगं, वइजोगं, कायजोगं च णिव्वत्तयंति x x x णवरं सरीरइ दिय जोगा भाणियव्वा जस्स जे अत्थि । - भग० श २५ । उ २ । सू ५ अजीव द्रव्य नारकियों के परिभोग में आते हैं । परन्तु नैरयिक अजीव द्रव्यों के परिभोग में नहीं आते । नारकी अजीव द्रव्यों को ग्रहण करते हैं, ग्रहण करके मनो योग, वचन योग, काय योग में परिणत करते हैं । इसी प्रकार असुर कुमार से वैमानिक दंडओं तक जानना चाहिए किन्तु जिसके जितने योग हो उसके उतने जानने चाहिए । • १५ जीव और अधिकरण योग - १ जीवा णं भंते ! अधिकरणे कि आयप्पयोगणिव्वत्तिए परप्पयोगणिव्यत्तिए तदुभयप्पओगणिव्वत्तिए ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016029
Book TitleYoga kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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