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________________ ( ३४ ) टोका-सयोगकेवलिनः चत्वारः वाक्कायायुरुच्छ वासनिश्वासाख्याः। तस्यैव पुनः मिश्रकायायुषो, अयोगस्यआयु मैकः x x x। योगाः पर्याप्ता एकादश, अपर्याप्तश्चत्वारः। सयोग-केवली के चार प्राण वचन, काय, आयु, उच्छास-निश्वास, उसी के पुनः मिश्रकाय और आयु । अयोगी के एक आयु प्राण है। पर्याप्त में योग ग्यारह व अपर्याप्त में चार योग है। •२ सयोगी केवली के अपर्याप्त अवस्था भी होती है पज्जत्तसरोरस्स य पज्जत्तुदयस्स कायजोगस्स। जोगिस्स अपुण्णत्तं अपुण्णजोगो ति णिट्टि। ___-गोजी० गा १२६ टीका-परिपूर्णपरऔदारिकशरीरस्य पर्याप्तनामकर्मोदययुतस्य काय योगयुक्तस्य सयोगिकेवलिभट्टारकस्य आरोहणावरोहण कपाटद्वये समुद्भूतेकथितमपूर्णत्वं अपूर्णकाययोग इति। ततः कारणादौदारिक मिश्रकाययोगाक्रान्तः सयोगिकेवलिभट्टारकः कपाट युगलकाले अपर्याप्ततां भजनीति प्रवचने निर्दिष्टं कथितं । सयोगि केवलि भट्टारक का परम औदारिक शरीर परिपूर्ण है, उनके पर्याप्त नाम कर्म का उदय भी है और वे काय योग से युक्त है। फिर भी वे जब कपाट समुद्घात करते हैं, एक समुद्घात का विस्तार करते हुए और एक का संकोच करते हुए, तब इन दोनों में अपूर्ण काय योग होने से अपूर्णपना कहा है। अतः औदारिक मिश्र काय योग से युक्त सयोगि केवली के दोनों कपाटों के काल में अपर्याप्तपना होता है। नोट-सयोगि केवली के समुद्घात काल में-कपाट युगल काल में, प्रतर युगल काल में और लोक पूरण में इन पांच समय में अपर्याप्तपना मंदप्रबोधिनी टीका में कहा है । अपूर्ण योग ही अर्थात् औदारिकमिश्र काय तथा कार्मण काय योग का सद्भाव ही उनके उपचार से अपर्याप्तपने का कारण है । मुख्य रूप से वे अपर्याप्त नहीं है । .१३ सयोगो जीव और द्रव्य जीवेण मंते। जाइ दवाई ( मणजोगत्ताए गेण्हइ ताई किं ठियाई गेण्हइ, अठियाई गेण्हइ । )xxx मणजोगत्ताए जहा कम्मगसरीरं णवरंणियमं छद्दिसि, एवं वइजोगत्ताए चि। कायजोगत्ताए वि जहा औरालियसरीरस्स। -भग० श । २५ । उ २ । सू १५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016029
Book TitleYoga kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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