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________________ ( ४ ) माणीहि तयावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमेणंईहापोहमग्गणवेसणं करेमाणस्स सन्निपुग्वे जाइसरणे समुप्पन्ने । णाय ० श्रु १ । अ १ । अ १ । मू ३२,३३ लेश्या की उत्तरोत्तर विशुद्धता के साथ शुभ योग ( परिणाम ) भी जाति स्मरण ज्ञान की उत्पत्ति में एक आवश्यक अंग है। .१.१२ शुभ योग ( परिणाम ) से अवधि ज्ञान आणंदस्स समणोवासगस्स्स अन्नया कदाइ सुभेणं अज्झवसाणेणं सुभेणं परिणामेणं लेस्साहिं विसुज्झमाणीहि तयावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमेणं ओहिनाण समुप्पन्ने। -उवा ० अ १ । सू १२ शुभ योग के साथ लेश्या को उत्तरोत्तर विशुद्धि होनी अवधि ज्ञान की प्राप्ति में एक आवश्यक अंग है। नोट-जहाँ लेश्या की उत्तरोत्तर विशुद्धि है वहाँ शुभ अध्यवसाय के साथ शुभ योग का होना आवश्यक है । .१.१३ शुभ योग ( परिणाम ) से अवधि ज्ञान __तस्स णं ( असोच्चा केवलीस्सणं ) भंते ! छट्टछट्ठणं x x x अनया कयाइ सुभेणं अज्झवसाणेणं सुभेणं परिणामेणं, लेस्साहि विसुज्झमाणीहिं-विसुज्झ माणोहि तयावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमेणं ईहापोह मग्गणगवेसणं करेमाणस्स विभंगे नामं अन्नाणे समुप्पज्जइ । -भग० श ९ । उ ३१ । सू २१ ___ शुभ योग तथा शुभ अध्यवसाय व लेश्या का उत्तरोत्तर विशुद्ध होना विभंग अज्ञान की प्राप्ति में एक आवश्यक अंग है । .१.१४ शुभ-अशुभ योगो देव का शुभ-अशुभ योगी देव-देवी को जानना-देखना अवधि ज्ञानी शुभ योगी देव सम्यग्दृष्टि उपयुक्त-अनुपयुक्त आत्मा द्वारा अविशुद्ध लेशी देव, देवी या अन्यतर को जानता है, देखता है। विभंग अज्ञानी शुभ योगी देव मिथ्या दृष्टि उपयुक्त-अनुपयुक्त आत्मा द्वारा अविशुद्ध लेशी देव-देवी या अन्यतर को नहीं जानता हैं, नहीं देखता है । •२ सयोगी जीव और मनो-द्रव्य-योग के पुद्गलों का ग्रहण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016029
Book TitleYoga kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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