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________________ ( 56 ) योग का हो सकता है। किन्तु भावयोग आत्मा के संयोग से ही हो सकता है वही योग आस्रव है। आस्रबके पाँच विकल्प है । आठ आत्मा में कुछ विकल्पों से अभिव्यक्त किया गया है। मिथ्यात्व आस्रव-दर्शन आत्मा कषाय आस्रव-कषाय आत्मा योग आस्रव-योग आत्मा शुभ योग पाँच भाव है-मोह कर्म का उपशम, क्षायिक-क्षयोपशम । नाम कर्म का उदय, अंतराय कर्म का क्षय, क्षयोपशम तथा पारिणामिक भाव । ये पाँचो भाव शुभ योग में है। निर्जरा की अपेक्षा से इनकी संगति बैठती है। ___ योग की शुभता में मोहकर्म का अनुदय आवश्यक है। यह अनुदय उपशम, क्षायक, क्षयोपशम तीनों में से किसी भी रूप में हो सकता है। चंचलता से इसका सम्बन्ध नहीं है। इसका सम्बन्ध है मात्र शुभता से । अंतराय कर्म का क्षय, क्षयोपशम और नाम कर्म के उदय से योग उत्पन्न होता है । आस्रव को आचार्यों ने भव-हेतु कहा है। योग आस्रव तेरहवें गुणस्थान तक है। योग आस्रव जनक प्रकृति एक शरीर नाम कर्म की है तथा अशुभ योग में चारित्र मोहनीय कर्म की प्रकृतियाँ सहायक बनती है । __योग का पूर्ण रूप से निरोध होनेपर अयोग संवर हो जाता है। यह स्थिति चौदहवें गुणस्थान में बनती है। संवर के पाँच प्रकार है १ सम्यक्त्व संवर, २ व्रत संवर, ३ अप्रमाद संवर, ४ अकषात संवर तथा ५ अयोग संवर | अयोग संवर चौदहवें गुणस्थान में होता है तथा सम्पूर्ण संवर की यही अवस्था है। आंशिक अयोग संवर नीचे के गुणस्थान में भी है किन्तु आंशिक संवर का यहाँ उल्लेख नहीं है इसलिए तो पाँच गुणस्थान में व्रत संवर ग्रहण नहीं किया। नौवें व दश गुणस्थान में कषाय की अत्यल्पता के बावजूद भी अकषाय संवर नहीं माना। इसी तरह सातवें से तेरहवें गुणस्थान तक आंशिक अयोग संवर होते हुए भी अयोग संवर नहीं माना है। एक चौदहवे गुणस्थान में ही पूर्ण अयोग संवर सघता है । मन, वचन व काय के योग को अन्तमखी वनाना प्रतिसंलीनता तप है। किसी एक आलम्बन पर मन को एकाग्र करना या योग निरोध को ध्यान कहते हैं। केवली के योग निरोधात्मक ध्यान होता है । जहाँ शुभ योग है वहाँ नियम से निर्जरा है। जहाँ निर्जरा है वहाँ शुभयोग की भजना है । योग की चंचलता के साथ ही शुभकर्म वर्गणा का बंध हो जाता है, निर्जरा बाद में होती है। पुण्य का बंध नाम कर्म का उदय और पारिणामिक ये दो भाव है। आत्मा एक योग है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016028
Book TitleYoga kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1993
Total Pages428
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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