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________________ ( 55 ) ऋजुगति में स्थूल शरीर का योगजन्य प्रवाह रहता है। वक्रगति में कार्मण योग की चंचलता रहती है। योग तेरहवें गुण स्थान तक है अतः कर्म बंध भी तेरहवें गुणस्थान तक है । शुभ नाम कम बंध के चार कारण में एक कारण है-अविसंवादन योग - कथनीकरनी की समानता । करण वीर्य का सम्बन्ध योग से हैं अतः योग के करण वीर्य नहीं है। लब्धि वीर्य सभी गुणस्थान में है वीर्य हो सकता है । । अभाव होने से चौदहवें गुणस्थान योग के अभाव में भी लब्धि करण की उत्तर प्रकृतियाँ ५५ है उनमें मन-वचन के योग का भी उल्लेख मिलता है ५ द्रव्य, ५ शरीर, ५ इन्द्रिय, ४ मन के योग, ४ वचन के योग, ४ कषाय, ६ लेश्या, ४ संज्ञा, ३ दृष्टि, ७ समुद्घात, ३ वेद व ५ आस्रव = कुल ५५ 1 कर्मों' के संयोग या वियोग से होने वाली आत्मा की अवस्था को भाव कहते है परिणाम विशेष को भी भाव कहा जाता है । यह मनोयोग आदि से सम्बन्धित परिणाम है । अध्यवसाय, लेश्या व योग के समन्वित रूप को ही भाव करते हैं । व्यवहार में मोक्ष के चार मार्गों में भाव का भी उल्लेख है । वह यही परिणाम विशेष भाव है । भाव शुभ-अशुभ दोनों होते हैं। शुभ भावों में संलग्न जीव मोक्ष का उत्कृष्ट सुख पा सकता है। वहाँ अशुभ भावों में लगा जीव सातवीं नरक तक का उत्कृष्ट दुःख भी पा लेता है । श्रेणी आरोहण के समय भावों की ही प्रधानता रहती है, पर वचन और काय योग की क्रिया भी साथ में हो सकती है। माता मरुदेवा प्रथम गुणस्थान से सातवें, फिर श्रेणी चढ़ते हुए तेरहवें गुणस्थान में सर्वज्ञ बनीं, तत्क्षण योग निरुद्ध कर सिद्ध, बुद्ध व मुक्त बनीं । अशुभ योग के प्रति आकर्षण व शुभ योग के प्रति उदासीनता को रति-अरति पापस्थान कहते हैं । छट्ठे गुणस्थान तक अशुभ योग है तथा तेरहवें तक शुभ योग है । अस्तु आस्रव के पाँच प्रकार है-उसमें पाचवा योग आश्रव है। योग अर्थात् मन, वचन व काय की प्रवृत्ति । मिथ्यात्व अवत, प्रमाद व वषाय आस्रव सावद्य है । योग के दो प्रकार है— शुभ योग और अशुभ योग । उनमें अशुभ योग को सावद्य तथा शुभयोग से निर्जरा होती है इस दृष्टि से निरवद्य है । मन, वचन व काय की वर्गणा पौद्गलिक है किन्तु यही योग नहीं है । मन, वचन व काय का योग आत्म-प्रवृत्ति जुड़ने से होता है । वर्गणा द्रव्य मन, द्रव्य वचन व द्रव्य काय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016028
Book TitleYoga kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1993
Total Pages428
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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