SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 282
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १६१ ) .१६ वनस्पतिकाय मैं वणप्फइकाइयाणं भण्णमाणे अस्थि एयं गुणहाणं xxx तिण्णि नोग xxx। -षट ० खं० १, १ । टीका । पु २ । पृ० ६१२ वनस्पतिकाय के जीवों का प्रथम गुणस्थान है। उनमें तीन योग होते हैं । यथा (१) औदारिक कायरोग, (२) औदारिक मिश्रकाययोग और (३) कार्मणकाययोग। .१६.०१ अपर्याप्त वनस्पतिकाय में तेसिं ( वणप्फइकाइयाणं ) चेव अपजत्ताणं भण्णमाणे अस्थि xxx दो FTTT X X XI -षट • खं० १, १ । टीका । पु २ । पृ० ६१३ अपर्याप्त वनस्पतिकाय में औदारिकमिश्र और काम काय -- दो योग होते हैं । '१६०२ पर्याप्त वनस्पतिकाय में तेसिं ( वणप्फइकाइयाणं) चेव पजत्ताणं भण्णमाणे अस्थि x x x ओरालियकायजोग xxx| -षट ० खं० १, १ । टीका । पृ २ । पृ० ६१३ पर्याप्त वनस्पतिकाय में एक औदारिक काययोग होता है । १६.०३ प्रत्येक शरीर वनस्पतिकाय में पत्ते यसरीरषणप्फईणं भण्णमाणे अस्थि x x x तिण्णि जोग x x x | -षट ० खं० १, १ । टीका । पु० २ । पृ० ६१४ प्रत्येक शरीरी वनस्पतिकाय के जीवों में तीन योग होते हैं । यथा --- (१) औदारिक काययोग, (२) औदारिकमिश्र काययोग तथा (३) कार्मण काययोग । १६.०३.०१ अपर्याप्त प्रत्येक शरीर वनस्पतिकाय में तेसिं (पत्ते यसरीरवणप्फईणं ) चेव अपजत्ताणं भण्णमाणे अस्थि xxx दो जोग xxx। -षट० खं० १, १ । टीका । पु २ । पृ० ६१५ अपर्याप्त प्रत्येक शरीर वनस्पतिकाय में औदारिकमिश्र और कार्मणकाय- दो योग होते हैं। .१६.०३.०२ पर्याप्त प्रत्येकशरीर वनस्पतिकाय में तेसि ( पत्ते यवणप्फईj) चेव पजत्ताणं भण्णमाणे अस्थि x x x ओरालियकायजोगो xxx। -षट् ० खं १, १ । टीका । पु २ । पृ० ६१५ पर्याप्त प्रत्येक शरीर वनस्पतिकाय में एक औदारिक काययोग होता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016028
Book TitleYoga kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1993
Total Pages428
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy