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________________ ( १६२ ) .१६.०३०३ लब्धि-अपर्याप्त प्रत्येकशरीर वनस्पतिकाय में लद्धिअपजत्ताणं ( पत्तेयसरीरवणप्फाईणं) पि एगो आलायो पत्तेयवणप्फइ-अपजत्ताणं जहा तहा वत्तव्यो। -षट ० खं १, १ । टीका । पृ २ । पृ० ६१६ लब्धि-अपर्याप्त प्रत्येक शरीर वनस्पतिकाय में औदारिकमिश्न और कार्मणकाय-दो योग होते हैं। .१६.०३.०४ निवृत्तिपर्याप्त प्रत्येक शरीर वनस्पतिकाय में एवं णिव्वत्तिपजत्तस्स वि तिणि आलावा वत्तव्वा । __ -षट ० ख० १, १ । टीका ! पु २ । पृ० ६१६ औधिक निवृत्तिपर्याप्त प्रत्येकशरीर वनस्पतिकाय में औदारिक, औदारिकमिश्र और कामणकाय-तीन योग होते हैं ।। अपर्याप्त निवृत्तिपर्याप्त प्रत्येकशरीर वनस्पतिकाय में औदारिकमिश्र और कार्मणकाय दो योग होते हैं। पर्याप्त निवृत्तिपर्याप्त प्रत्येकशरीर वनस्पतिकाय में एक औदारिक काययोग होता है। .१६.०४ साधारण बनस्पतिकाय में साधारणवणप्फइकाइयाणं भण्णमाणे अस्थि x x x तिणि जोग x x x | -षट • खं० १, १ । टीका । पु २ । पृ० ६१६ साधारण वनस्पति काय में तीन योग होते हैं । .१६.०४.०१ अपर्याप्त साधारण वनस्पतिकाय में तेसि ( साधारणवणप्फईणं ) चेव अपजत्ताणं भण्णमाणे अस्थि xxx à FTTT X X X -षट० खं १, १ । टीका । पु २ । पृ ६१८ अपर्याप्त साधारण वनस्पतिकाय में औदारिकमिश्र और कार्मणकाय-दो योग होते हैं। .१६.०४.०२ पर्याप्त साधारण वनस्पतिकाय में तेसिं (साधारणवणप्फइकाइयाणं) चेव पजत्ताणं भण्णमाणे अस्थि xxx ओरालियकायजोगो xxx। -षट ० ख० १, १ । टीका । सु २ । पृ० ६१७ पर्याप्त साधारण वनस्पतिकाय में एक औदारिक काययोग होता है । .१६.०४.०३ सूक्ष्म साधारणशरीर वनस्पतिकाय में । सव्व साधारणसरीरसुहुमाणं मुहुमपुढवि-भंगो। -षट • खं० १, १ । टीका । पु० । पृ० ६२० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016028
Book TitleYoga kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1993
Total Pages428
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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