SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 18
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रस्तावना जैन दर्शन सूक्ष्म है और गहन है तथा मूल सिद्धान्त ग्रन्थों में इसका कमबद्ध तथा विषयानुक्रम विवेचन नहीं होने के कारण इसके अध्ययन में तथा इसके समझने में कठिनाई होती है। अनेक विषयों के विवेचम अपूर्ण-अधूरे हैं। अतः अनेक स्थल इस कारण से भी समझ में नहीं आते । अर्थ बोध की इस दुर्गमता के कारण जैन-अजैन दोनों प्रकार के विद्वान जैन दर्शन के अध्ययन में सकुचाते हैं । क्रयबद्ध तथा विषयानुक्रम विवेचन का अभाव जैन दर्शन के अध्ययन में सबसे बड़ी बाधा उपस्थित करता है - ऐसा हमारा अनुभव है। जब हमने नरक, पुद्गल तथा ध्यान आदिका अध्ययन प्रारम्भ किया तो हमारे सामने यही समस्या आयी । आगम और सिद्धान्त ग्रंथों का संकलन करके इस समस्या का हमने आशिक समाधान पाया। इस प्रकार जब-जब हमने जैन दर्शन के अन्यान्य विषयों का अध्ययन प्रारम्भ किया तब-तब हमें सभी आगम तथा अनेक सिद्धान्त ग्रंथों को संपूर्ण पढ़कर पाठ संकलन करने पड़े । पुराने प्रकाशनों में विषय सूची तथा शब्दसूची नहीं होने के कारण पूरे ग्रंथों को बार-बार पढ़कर नौंध करनी पड़ी। इसी तरह जिस विषय का भी अध्ययन किया हमें सभी ग्रंथों का आद्योपांत अवलोकन करना पड़ा । इससे हमें अनुमान हुआ कि विवद् वर्ग जैन दर्शन के गम्भीर अध्ययन में क्यों सकुचाते हैं । हमने सम्पूर्ण जैन वाङ्मय को १०० वर्गों में विभक्त करके मूल विषयों के वर्गीकरण की रूपरेखा (देखें पृ० ६ ) तैयार की। यह रूपरेखा कोई अंतिम नहीं है । परिवर्तन, परिवर्द्धन तथा संशोधन की अपेक्षा भी इसमें रह सकती है। मूल विषयों में से भी अनेकों के उपविषयों की सूची भी हमने तैयार की है। उनमें जीव परिणाम ( विषयांकन ०४ ) की उप विषय की सूची पृ० ६ पर दी गई है। जीव परिणाम की यह उपसूची भी परिवर्तन, परिवर्द्धन व संशोधन की अपेक्षा रख सकती है। विद्वद् वर्ग से निवेदन है कि इनके इन विषय सूचियों का गहन अध्ययन करें तथा इनमें परिवर्तन, परिवर्द्धन, संशोधन सम्बन्धी अथवा अपने अन्य बहुमूल्य सुझाव भेजकर हमें अनुगृहीत करें । कतरन व फाइल करने का कार्य पूरा होने के बाद हमने संकलित विषयों में से किसी एक विषयों में से पाठों का संपादन करने का विचार किया । संपादन में निम्नलिखित तीन बातों को हमने आधार माना है : १ - पाठों का मिलान २ - विषय के उपविषयों का वर्गीकरण तथा १३ – हिन्दी अनुवाद 3 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016028
Book TitleYoga kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1993
Total Pages428
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy