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________________ नये कर्मों के बन्ध न होने तथा पूर्व बद्ध कर्मों की निर्जरा करने में कारणभूतयोगप्रत्याख्यान । जोगपञ्चक्खाण ( योगप्रत्याख्यान) - भग° शु १७।उ ३ •०१०९ जोगपडिसलीणया ( योगप्रतिसंलीनता) -भग श २५।उ प्र ११८ कायादि व्यापार के प्रति लीन होना । पडिसलीणया चउबिहा पण्णत्ता, तंजहा--इंदियपडिसंलीणया, कसायपडिसलीणया, जोगपडिसंलीणया xxx। टीका-अथ का सा योगप्रतिसंलीनता ? योगस्तदूपो भावस्तस्य करणं यत्तत्तथा। योग-मन, वचन और काय का व्यापार, इनके प्रति उसी रूप से दत्तचित्त हो जाना-योगप्रतिसं लीनता। •०११० जोगपयय-चरियं ( योगप्रत्यय-चरित )---पण्हा० द्वा ३।अ ३।सू ७० ६६० ___ समयानुकूल उचित व्यापार-प्रतिकार का निर्माण । मूल-रयणागरसागरं उम्मीसहस्समालाकुलाकुल xxx विरचित. बलिहोमधूवउपचार-दिन्नरुधिरचणाकरणपयत-जोगपयय-बरियं, x x x समुहमज्झे हणंति गंतूणजणस्स पोते। टीका-योगेषु-प्रवहणोचितव्यापारेणु प्रयता ये ते तथा, विरचितंनिर्मापितं सांयात्रिकैरित्यध्याहार्य । जिस प्रकार नाविक संकट उपस्थित होने पर उचित दिशा में नाव को ले जाने में यत्नवान हो जाता है, उसी प्रकार समयानुसार समुचित व्यापार-यत्न का निर्माण करनायोगप्रत्यय चरित । ०१११ जोगपययचरियं ( योगप्रयतचरित) - पण्हा० श्रु १।असू ११ समुचित रूप से क्रिया-कलापों के सम्पादन में दत्तचित्त । लुद्धा धणस्स कज्जे xxx जोगपयययरियं xxx गंतूण जणल्स पोते। ___ टीका-योगेषु-प्रवहणोचितव्यापारेषु प्रयता ये ते तथा, विरचितं-निर्मापितं सांयात्रिकरित्यध्याहार्यम् । यहाँ पर नाविक का दृष्टान्त देकर स्पष्टीकरण किया गया है। जिस प्रकार चतुर नाविक दत्तचित्त होकर अपनी नाव को यथास्थान ले जाता है उसी प्रकार अपने क्रियाकलाप को सुचारु रूप से सम्पादन करना-योगप्रयतचरित । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016028
Book TitleYoga kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1993
Total Pages428
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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