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________________ तत, तथाषघ्नन्ति इति, क्रियाविशेषणं चेदम्, एतेन योगाख्यश्चतुर्थः कर्मबन्धहेतुरुक्तः। जिस कर्म के बन्ध होने में मनोयोगादि निमित्त बनता हो, तथा उसी रूप में उस कर्म का बन्ध होता हो वह योगनिमित्त । योगनिमित्त कांक्षा मोहनीय कर्मबन्ध का दूसरा कारण है। यहाँ पर योगनिमित्त क्रियाविशेषण माना गया है । ..१०६ जोगनिरोहं ( योगनिरोध) -उत्त० अ २६ासू७३ योगों का निरोध-रुकना । अहाउयं पालइत्ता अन्तोमुहुत्तद्धावसेसाउए जोगनिरोहं करेमाणे xxx वेयणिज्ज आउयं नामं गोतंच एए चत्तारि विकम्मसे जुगवं खवेइ : केवली के आयुष्य के अन्तर्महूर्त मात्र काल शेष रहने पर वेदनीय, आयुष्य, नाम तथा गोत्र कर्म के क्षपण के लिए आवश्यक साधना-योगनिरोध । .०१०७ जोगनिरोहो ( योगनिरोध) -----ध्याश• गा ३ समस्त योगों अर्थात् मन, वचन, और काय के ब्यापार का रोध हो जाता। अंतोमुहुत्तमेत्तं वित्तापत्थाणमेगवत्थुमि । छउमत्थाणं झाणं जोगनिरोहो जिणाणं तु ॥ टीका-xx y 'योगनिरोधो जिनानां तु' इति तत्र योगा:-तत्त्वत औदारिकादिशरीरसंयोगसमुत्था आत्मपरिणामविशेषव्यापारा एव xxx अमीषां निरोधो योगनिरोधः, निरोधनं निरोधः, प्रलयकरणमित्यर्थः, केषां ?'जिनानां' केवलिनां तुशब्द एवकारार्थः स वावधारणे, योगनिरोध एव न तु चित्तावस्थानं, चित्तस्यैवाभावात्, अथवा योगनिरोधो जिनानामेव ध्यानं नान्येषाम् xxx औदारिकादि शरीर के संयोग से होनेवाले समस्त आत्मपरिणाम रूप व्यापारों का रुक जाना-योग निरोध । केवलियों के चित्त का अभाव होने के कारण चित्तावस्थान रूप ध्यान नहीं होता है, अपितु योगनिरोध को ही उनका ध्यान माना गया है । .०१०८ जोगपश्चक्खाणेणं ( योगप्रत्याख्यान ) योग का प्रत्याख्यान अर्थात त्याग । जोगपश्चक्खाणेणं अजोगत्तं जणयइ। अजोगी गं जीवे नवं कम्मं न बन्धर पुन्धबद्धं निजरेइ। --उत्त० अ२६ासू३८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016028
Book TitleYoga kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1993
Total Pages428
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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