SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 812
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७९३ संपह संनिमहिअ-संपडिवज्ज संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष संनिमहिअ वि [संनिमहित] व्याप्त, पूर्ण, संनेज्झ देखो संनिज्झ । भरा हुआ । पूजित । संपअ । (अप) देखो संपया। संनियट्ट वि [संनिवृत्त] रुका हुआ, विरत ।। यारि वि [°चारिन्] प्रतिषिद्ध का वर्जन संपइ अ [संप्रति] इस समय, अधुना, अब । पुं. करनेवाला। जैन राजा, सम्राट अशोक का पौत्र । काल संनिलयण न [संनिलयन] आश्रय । आधार । पुं. वर्तमान काल । संनिवाइ वि [संनिवादिन] संगत बोलनेवाला, | संपइण्ण वि संप्रकीर्ण] व्याप्त । व्याजबी कहनेवाला। संपउत्त वि [संप्रयुक्त] सम्बद्ध, जोड़ा हुआ। संनिवाइय वि [सांनिपातिक] संनिपात रोग | संपओग संप्रयोग] संयोग, सम्बन्ध । से सम्बन्ध रखनेवाला । अनेक भावों के संयोग संपकर देखो संपगर। से बना हुआ भाव । पुं. संनिपात, मेल, संपक्क पुं[संपर्क] सम्बन्ध । संयोग । संपक्खाल पुं [संप्रक्षाल] तापस का एक भेद संनिवाइय वि [संनिपातिक] देखो संनि __ जो मिट्टी वगैरह घिस कर शरीर का प्रक्षालन वाइ। करते हैं। संनिवाडिय वि [संनिपातित] विध्वस्त किया | संपक्खालिय वि [संप्रक्षालित] धोया हुआ । हुआ । संपक्खित्त वि [संप्रक्षिप्त] फेंका हुआ, डाला संनिविट्ट न [संनिविष्ट] मोहल्ला । वि. हुआ। जिसने पड़ाव डाला हो वह । संहत और संपगर सक [संप्र+कृ] करना । स्थिर आसन से बैठा हुआ। संपगाढ वि [संप्रगाढ] अत्यन्त आसक्त । संनिवेस पं संनिवेश] नगर के बाहर का | व्याप्त । स्थित, व्यवस्थित । प्रदेश । गाँव, नगर आदि स्थान । यात्री | संपगिद्ध वि [संप्रगद्ध] अति आसक्त । आदि का डेरा, मार्ग का वास-स्थान, पड़ाव । संपग्गहिअ वि[संप्रगृहीत] खूब प्रकर्ष से गृहीत, ग्राम । रचना। विशेष अभिमान-युक्त। संनिवेसणया स्त्री [संनिवेशना] संस्थापन । | संपज्ज अक [ सं+पद् ] सम्पन्न होना । संनिवेसिल्ल वि [संनिवेशिन्] रचनावाला । मिलना। संनिसन्न वि [संनिषण्ण] बैठा हुआ, सम्यक् । संपज्जलिअ ' [संप्रज्वलित] तीसरा मरक संनिसिज्जा । स्त्री [संनिषद्या] आसन- का नवा नरकेन्द्रक, नरकावास-विशेष । संनिसेज्जा । विशेष, पीठ आदि आसन । संपढिअ देखो संपत्थिअ = संप्रस्थित । संनिह वि [संनिभ] समान, सदृश । संपड अक [ सं+पद् ] प्राप्त होना, सिद्ध संनिहाण न [संनिधान] ज्ञानावरणीय आदि होना, निष्पन्न होना । कर्म । अधिकरण कारक, आधार । सान्निध्य । | | संपडिबूह सक [संप्रति + बुंह] प्रशंसा सत्थ न [°शस्त्र] संयम, त्याग । °सत्थ न | [शास्त्र] कर्म-शास्त्र। | संपडिलेह सक [ संप्रति + लेखय] प्रतिसंनिहि पुंस्त्री [संनिधि] उपभोग के लिए जागरण करना, प्रत्युपेक्षण करना, अच्छी स्थापित वस्तु । संस्थापन । सुन्दर निधि । तरह निरीक्षण करना। समीपता । संचय। संपड़िवज्ज सक [ संप्रति+पद् ] स्वीकार ahiT 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy