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________________ ७९२ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष संध-संनिभ संध सक [सं+धा] साँधना, जोड़ना। अनु- | संधीरविय वि [संधीरित] आश्वासित । सन्धान करना, खोज करना। वांछना। | संधुक्क अक [प्र + दीप, सं+- धुक्ष्] जलना। वृद्धि करना । करना। सक. जलाना । उत्तेजित करना । संध° देखो संझ°। संधुक्कण न [संधुक्षण] सुलगानेवाला । संधय वि. [संधक] सन्धान-कर्ता । संधुच्छिद (शौ) प्रज्ज्वलित, उत्तेजित । संधया देखो संध % सं+घा । संघयाती। संधुम देखो संदुम। संधा स्त्री. प्रतिज्ञा, नियम । संधे देखो संध = सं +धा । संधाण न [संधान] दो हाड़ों का संयोग-स्थान । संनक्खर न [संज्ञाक्षर] अकार आदि अक्षरों सन्धि । मद्य । संयोग। नींबू आदि का की आकृति । अचार । संनण न[संज्ञान] इशारा करना, संज्ञा करना । संधारण न [संधारण] सान्त्वना । | संनय । वि [संनत] नमा हुआ । अवनत । संधारिअ वि [दे] योग्य । संनत । संधारिअ वि [संधारित] रखा हुआ, संनव सक [सं+ज्ञापय्] संभाषण से संतुष्ट स्थापित । करना। संधाव सक [सं+धाव] दौड़ना । संनह देखो संणज्झ। संधि पुंस्त्री. छिद्र, विवर। संहान, उत्तरोत्तर | संनहण न [संनहन] संनाह । पदार्थ-परिज्ञान । व्याकरण-प्रसिद्ध दो अक्षरों। संनहिय देखो संणद्ध । के संयोग से होनेवाला वर्ण-विकार । सेंध, | साटिय वि संताहित तयार किया हा चोरी के लिए भीत में किया जाता छेद । सजाया हुआ। दो हाड़ों का संयोग-स्थान । मत । कर्म, कर्म संनिकास देखो संनिगास । सन्तति । सम्यग् ज्ञान की प्राप्ति । चारित्र- संनिकिट्ट वि [संन्निकृष्ट] आसन्न । मोहनीय कर्म का क्षयोपशम । अवसर, समय । संनिक्खित्त वि [संनिक्षिप्त] डाला हुआ, मिलन। दो पदार्थों का संयोग-स्थान । | रखा हुआ। सुलह । ग्रंथ का प्रकरण, अध्याय, परिच्छेद । संनिगास वि [संनिकाश] समान, तुल्य, °गिह न [°गृह] दो भीतों के बीच का | सदृश । पुं. अपवाद । 'न. समीप । प्रच्छन्न स्थान । च्छेयग, छेयग वि | संनिगास [संनिकर्ष] संयोग । [°च्छेदक] सेंध लगा कर चोरी करनेवाला । | संनिचय पं. समह । संग्रह । °पाल, वाल वि. दो राज्यों की सुलह का संनिचिय वि [सनिचित] निबिड़ किया रक्षक। हुआ। संधिअ वि [दे] दुर्गन्धि, दुर्गन्धवाला । संनिजुज सक [संनि+ युज्] अच्छी तरह संधि वि [संधित प्रसारित । जोड़ना। संधिआ देखो संहिया। संनिज्झ न [सांनिध्य] सहायता करने के संधिविग्गहिअ पुं [सान्धिविग्रहिक] राजा लिए समीप में आगमन, निकटता। की सन्धि और लड़ाई के कार्य में नियुक्त | संनिनाय पुं [संनिनाद] प्रतिध्वनि, प्रतिमन्त्री । शब्द । संधीर सक [ सं + धीरय् ] आश्वासन देना। । संनिभ देखो संनिह । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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