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________________ अब्भास-अभत्त अब्भास सक [अभि+अस्] अभ्यास करना, आदत डालना । संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष उत्तेजित । अब्भुत अक [स्ना] स्नान करना । अब्भुत अक [ प्र + दीप् ] प्रकाशित होना । उत्तेजित होना । For a [ अभ्याहत ] आघात-प्राप्त । अभिग देखो अब्भंग अभि + अंज् । अभिग देखो अब्भंग = अभ्यंग | = अभितर देखो अब्भंतर । अभितरिय वि [आभ्यन्तरिक ] भीतर का, अन्तरंग | अब्भितरुद्धि पुं [अभ्यन्तरोध्विन् ] कायोत्सर्ग का एक दोष, दोनों पैर के अंगूठों को मिलाकर और पृश्नियों को बाहर फैलाकर किया जाता ध्यान - विशेष । अब्भवि [] संगत, सामने आकर भिड़ा हुआ । अब्भिड सक [ सं + गम् ] संगति करना, मिलना । forfa वि [] सार, मजबूत । अभिण्ण वि [ अभिन्न ] भेदरहित । अब्भुअअ देखो अब्भुदय । अब्भुक्खसक | अभि + उक्ष्] सोंचन करना । अक्खणीया स्त्री [अभ्युक्षणीया ] सीकर, आसार, पवन से गिरता जल । अब्भुगम पुं [अभ्युद्गम ] उदय, उन्नति । अब्भुग्गय वि [अभ्युद्गत] उन्नत । उत्पन्न। उठाया हुआ । चारों तरफ फैला हुआ । अब्भुग्गय वि [अभ्रोद्गत ] ऊंचा, उन्नत । अब्भुञ्च पुं [अभ्युच्चय ] समुच्चय । अब्भुज्जय वि [अभ्युद्यत] उद्यत । तैयार | पुं. एकाकी विहार । जिनकल्पिक मुनि । अब्भुट्ठ उभ [ अभ्युत् + स्था] आदर करने के लिए खड़ा होना । प्रयत्न करना । तैयारी करना । Jain Education International अब्भुट्ठा देखो अब्भु । अब्भुट्टेत्तु [ अभ्युत्थातृ] अभ्युत्थान करने वाला । अन्य वि [ अभ्युन्नत] उन्नत, अब्भुत्थवि [अभ्युत्थ] उत्पन्न । अब्भुत्थ देखो अब्भुट्ठा । } ६१ अब्भुत्था अब्भुदय पुं [अभ्युदय ] उन्नति, उदय । अब्भुद्धर सक [ अभ्युद् + धृ] उद्धार करना । अब्भुब्भड वि [अभ्युद्भट ] अत्युद्भट, विशेष उद्धत । अब्भुयन [अद्भुत ] आश्चर्य । वि. आश्चर्य - कारक । पुं. साहित्य शास्त्र प्रसिद्ध रसों में से एक अब्भुवगच्छ सक [अभ्युप + गम् ] स्वीकार करना । पास जाना । अब्भुवगम पुं [अभ्युपगम ] स्वीकार । तर्कशास्त्र - प्रसिद्ध सिद्धान्त - विशेष । अब्भुवयवि [अभ्युपगत ] स्वीकृत । समीप में गया हुआ । अब्भुववण्ण वि [ अभ्युपपन्न] अनुगृहीत । अब्भुववत्ति स्त्री [अभ्युपपत्ति ] मेहरबानी 1 अब्भुवे सक [अभ्युप + इ] स्वीकार करना । अब्भो देखो अव्वो । अब्भोक्खिय वि [अभ्युक्षित] सोंचा हुआ । अब्भोज्ज वि [अभोज्य ] भोजन के अयोग्य । अब्भोय (अप) देखो आभोग | अब्भोवगमिय वि [आभ्युपगमिक ] स्वेच्छा से स्वीकृत | स्त्री [T] स्वेच्छा से स्वीकृत तपश्चर्यादि की वेदना | अव्हिड देखो अब्भड | अहुत देखो अब्भुत । अभग्ग वि [अभग्न] अखण्डित | इस नाम का एक चोर | अभक्त वि [अभक्त ] भक्ति नहीं करनेवाला । ऊंचा || न. भोजन का अभाव | पुं [र्थ ] For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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