SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 781
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७६२ । संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष विसोहिय-विहंग आदि षट कर्म । भिक्षा का एक दोष, जिस विस्सम अक [ वि +श्रम् ] थाक लेना । दोषवाले आहार का त्याग करने पर शेष विस्सम पुं [विश्रम] विश्राम । भिक्षा या भिक्षा-पात्र विशुद्ध हो वह दोष । | विस्सर सक [वि + स्म भूलना। कोडि स्त्री ['कोटि] पूर्वोक्त विशोधि-दोष | विस्सर वि [विस्वर] खराब आवाजवाला। का प्रकार। विस्सस सक [वि + श्वस्] विश्वास करना । विसोहिय वि [विशोधित] शुद्ध किया हुआ। विस्साणिय वि [विश्राणित] दिया हुआ । पुं. मोक्ष-मार्ग। विस्साम देखो वीसाम। विस्स देखो विस = विश् । विस्सामण न [विश्रामण] अंग-मर्दन आदि विस्स न [विस्र] अपक्व मांस आदि की बू ।। भक्ति, वैयावृत्य । वि. कच्ची गन्धवाला । गंधि वि[°गन्धिन्] | विस्सार सक [वि+ स्म] भूल जाना। आमगन्धि, अपक्व मांस के समान गंधवाला। विस्सार सक [वि + स्मारय् ] विस्मरण विस्स [विश्व] उत्तराषाढ़ा नक्षत्र का अधिष्ठाता | करवाना। देव । स. सर्व । पन. जगत् । °इ [जित् विस्सारण न [विसारण] विस्तारण । यज्ञ-विशेष । कम्म पुं [°कर्मन्] शिल्पी- | विस्साव देखो विसाय = वि + स्वादय् । विशेष, देव-वर्ध कि । °पुर न. नगर विशेष । | विस्सावसु पुं [विश्वावसु ] एक गन्धर्व, देव भूइ पुं [भूति] प्रथम वासुदेव का पूर्व | विशेष। भवीय नाम । यम्म देखो कम्म । °वाइअ | विस्सास पुं [विश्वास] प्रतीति, श्रद्धा । पं| वादिक ] भ० महावीर का एक गण । | विस्माहल पुं [विश्वाहल] अंग-विद्या का °सेण पुं [°सेन भ० शान्तिनाथजी का पिता, | जानकार चतुर्थ रुद्र-पुरुष । एक राजा । अहोरात्र का एक महतं । देखो | विस्सुअ वि [विश्रुत] प्रसिद्ध । वीस = विश्व । विस्मरि देखो विसुमरि। विस्सअ (मा) देखो विम्हय = विस्मय । विस्सेणि । स्त्री विश्रेणि, °णी] विस्संत देखो वीसंत । विस्सेणी ) निःश्रेणि, सीढ़ी । विस्संतिअ न [विश्रान्तिक] मथुरा का एक | विस्सेसर पुं [विश्वेश्वर] काशी में स्थित तीर्थ । महादेव की एक मूत्ति । विस्संद अक [वि + स्यन्द्] टपकना, झरना। | विस्सोअसिआ देखो विसोत्तिआ । चुना। विह सक [व्यध्] ताड़न करना । विस्संभ सक [वि+श्रम्भ] विश्वास करना । | विह देखो विस = विष । विस्संभ पुं [विश्रम्भ] विश्वास, श्रद्धा । °घाइ | विह पुन [दे] मार्ग । अनेक दिनों में उल्लंघवि ['घातिन्] विश्वास-घातक । नीय मार्ग । अटवी-प्राय मार्ग । विस्संभर पं विश्वम्भर भुजपरिसर्प की एक | विह पुन [विहायस्] आकाश। . जाति । मूषक । इन्द्र । विष्णु, नारायण । विह पुंस्त्री [विध] भेद । पुन. आकाश । विस्संभरा स्त्री [विश्वम्भरा] पृथिवी । विहई स्त्री [दे] बैंगन का गाछ । विस्संभिय वि [विश्वभृत् जगत्-पूरक । विहंग पुं [विहङ्ग] पक्षी । णाह पुं[°नाथ] विसत्थ देखो वीसत्थ । गरुड़ पक्षी। विस्सद्ध देखो वीसद्ध। विहंग पुं [विभङ्ग] विभाग, टुकड़ा, अंश । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy