SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 780
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विसाही-विसोहि संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष ७६१ न. संसिद्धि। विसूइया स्त्री [विसूचिका] रोग-विशेष, विसाही स्त्री [वैशाखी] वैशाख मास की हैजा । पूर्णिमा या अमावस । विसूणिय वि [विशूनित] फूला हुआ। सूजा विसि स्त्री [दे] करि-शारी, गज-पर्याण ।। हुआ । काटा हुआ। विसि देखो बिसि। विसूर देखो विसुमर । विसिट्ठ वि [विशिष्ट] प्रधान । विशेष-युक्त । विसूर अक [खिद्] खेद करना। सुसभ्य । युक्त । व्यतिरिक्त । पुं. द्वीपकुमार- विसूहिय पुंन [विष्णग्हित] एक देव-विमान । देवों का उत्तर दिशा का इन्द्र । न. छः | विसेढि स्त्री [विश्रेणि] विदिशा सम्बन्धी दिनों का उपवास । दिट्ठि स्त्री [दृष्टि श्रेणि, वक्र रेखा । वि. विश्रेणि में स्थित । अहिंसा। विसेस सक [वि+शेषय] गुण आदि द्वारा विसिटि स्त्री [विसृष्टि] विपरीत क्रम । दूसरे से भिन्न करना, विशेषण से अन्वित विसिण विदे] प्रचुर रोमवाला। करना। विसिस सक [वि + शिष् ] विशेषण-युक्त । विसेस पुन. [विशेष] प्रभेद । भिन्नता । भेद । करना। असाधारण, अमुक, व्यक्ति, खास । पर्याय, विसिह पुं [विशिख] बाण, तीर । वि. शिखा- धर्म, गुण । अधिक । तिलक । साहित्यशास्त्ररहित । प्रसिद्ध अलंकार-विशेष । वैशेषिक-प्रसिद्ध विसी देखो बिसी। अन्त्य पदार्थ । “न्नु [ज्ञ] विशेष जानने विसी स्त्री [विंशति] बीस, बीस का समूह । वाला । °ओ अ [ 'तस् ] खास करके । विसीअ अक [वि + सद्] खेद करना । विसेस पुं [विश्लेष पृथक्करण । विसेसण न [विशेषण] दूसरे से भिन्नता निमग्न होना। बतानेवाला गुण आदि । विसीइय वि [विशीर्ण] जीर्ण, त्रुटित । न. जर्जरित होना। | विसेसय पुंन [विशेषक] तिलक । विसील वि [विशील] व्यभिचारी। खराब विसेसिअ वि [विशेषित] विशेषण-युक्त किया स्वभाववाला, विरूप आचरणवाला । हुआ, भेदित । अतिशयित । विसुज्झ सक [वि + शुध्] शुद्धि करना। | विसेस्स देखो विसेरा। विसुणिय वि [विश्रुत] विज्ञात । विसोग वि [विशोक] शोक-रहित । विसुत्त वि [विस्रोतस्] प्रतिकूल । खराब, | विसोत्तिया स्त्री विस्रोतसिका] विमार्ग गमन । दुष्ट चिन्तन । शंका । विसुत्तिया देखो विसोत्तिया । विसोपग । पुन [ दे. विंशोपक] कौड़ी का विसुद्ध वि [विशुद्ध] निर्मल, निर्दोष । विशद, | विसोवग । बीसवाँ हिस्सा । उज्ज्वल । पुं. ब्रह्मदेवलोक का एक प्रतर।। विसोह सक [वि + शोधय्] शुद्ध करना । विसुद्धि स्त्री [विशुद्धि] निर्दोषता, निर्मलता। निर्दोष बनाना । त्याग करना । विसुमर सक [वि + स्मृ] भूल जाना। विसोह वि [विशोभ] शोभा-रहित । विसुराविय वि [खेदित] खिन्न किया हुआ। विसोहय वि [विशोधक] शुद्धि-कर्ता । विसुव न [विषुवत्] रात और दिन की | विसोहि स्त्री [विशोधि] विशुद्धता । अपराध - समानतावाला काल । के योग्य प्रायश्चित्त । आवश्यक, सामयिक दुष्ट । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy