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________________ ७४४ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष वितिगिछा-विदद्ध करना । संशय करना । निन्दा करना। वित्ती° देखो वित्ति = वृत्ति । 'संखेव पुं वितिगिछा देखो वितिगिच्छा। [°संक्षेप] बाह्य तप का एक भेद-खाने, वितिगिच्छ देखो वितिगिछ । पीने और भोगने की चीजों को कम करना । वितिगिच्छा स्त्री [विचिकित्सा] संशय । वित्तेस वि [वित्तेश] धनी, श्रीमन्त । चित्त-भ्रम । निन्दा । वित्थ पुंन [विस्त] सुवर्ण। वितिगिट्ठ देखो विइगिट्ठ । वित्थक अक [वि + स्था] स्थिर होना । वितिमिर वि. अन्धकार-रहित, विशुद्ध । विलम्ब करना । विरोध करना । अज्ञान-रहित । पुं. ब्रह्म-देवलोक का एक | वित्थक्क देखो विथक्क । विमान-प्रस्तट । वित्थड । वि [विस्तृत] विस्तार-युक्त । वितिरिच्छ वि [वितिर्यञ्च् ] वक्र । वित्थय संबद्ध । वित्त विदे] दीर्घ। वित्थर अक [वि + स्तु] फैलना । बढ़ना । वित्त न द्रव्य । धन । वि. प्रसिद्ध । म वि | वित्थर पुंन [विस्तर] विस्तार । शब्द-समूह । [°वत् धनी। | वित्थर देखो वित्थड। वित्त न [वृत्त] छन्द, पद्य । आचरण । वि. | वित्थरण वि [विस्तरण] फैलानेवाला । उत्पन्न । अतीत । दृढ़ । वर्तुल । अधीत । वुद्धिजरेक । संसिद्ध । पूर्ण । 'प्पाय वि [प्राय] पूर्ण- | वित्थार सक [वि + स्तारय] फैलाना। प्राय । देखो वट्ट = वृत्त । वित्थार पुं [विस्तार] फैलाव । प्रपञ्च । वित्त देखो वेत्त = वेत्र । रुइ वि [°रुचि] सब पदार्थों को विस्तार से °वित्त देखो पित्त । जानने की चाहवाला सम्यक्त्वी । वित्तइ वि [दे] गर्वित । पुं.विलसित, विलास । | वित्थारइत्तअ (शौ) वि [विस्तारयितु] गर्व । वित्तंत पुं[वृत्तान्त] समाचार । फैलानेवाला। | वित्थारग वि [विस्तारक] फैलानेवाला । वित्तत्थ देखो वितत्थ । वित्तविय देखो वट्टिअ, वत्तिअ = वर्तित । वित्थिण्ण वि [विस्तीर्ण] विस्तार-युक्त । वित्तास सक [वि + त्रासय् ] डराना । वित्थिय देखो वित्थड। वित्तास पुं [वित्रास] भय, त्रास । वित्थिर न [दे] विस्तार । वित्ति पुं [वेत्रिन्] दरबान । वित्थुय देखो वित्थड। वित्ति स्त्री [वृत्ति] जीविका । टीका । आच विथक्क वि [विष्ठित] विरोधी बना हुआ । विद देखो विअ = विद् । रण, बर्तन । स्थिति । कौशिकी आदि रचना विदंड पुं [विदण्ड] कक्ष तक लम्बी लट्ठी। विशेषः । अन्तःकरण आदि का एक तरह का | विदंसग देखो विदंसय । परिणाम । °अ वि [ द] वृत्ति देनेवाला । °आर वि [°कार] टीकाकार । "च्छेय, विदसण न [विदर्शन] अन्धकार-स्थित वस्तु °छेय [च्छेद] जीविका-विनाश। देखो का प्रकाशन । देखो विदरिसण । वित्ती° = वृत्ति । विदंसय वि [विदंशक] श्येन आदि हिंसक वित्तिअ वि [वित्तिक] धनवाला, वैभवशाली।। पक्षी । वित्ती' देखो वित्त = वृत्त। कप्प वि | विदड्ढ । वि [विदग्ध] पण्डित । विशेष [°कल्प] सिद्धप्राय, पूर्णप्राय । । विदद्ध , दग्ध । अजीर्ण का एक भेद । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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