SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 584
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पसंज-पसाम __ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष ५६५ सम्बन्ध । आपत्ति, अनिष्ट-प्राप्ति । मथुन ।। करनेवाला । आसक्ति । प्रस्ताव, अधिकार । पसम अक [प्र + शम्] अच्छी तरह शान्त पसंज अक [प्र + सञ्] आसक्ति करना ।। होना। आपत्ति होना अनिष्ट-प्राप्ति होना । पसम पुं [प्रशम] प्रशान्ति, शान्ति । लगातार पसंडि न [दे] सुवर्ण । दो उपवास । पसंत वि [प्रशान्त] शम-प्राप्त । साहित्य- पसम पुं [प्रश्रग] विशेष मेहनत- खेद । शास्त्र-प्रसिद्ध शान्त रस । पसमण न [प्रशमन] प्रकृष्ट शमन । वि. पसंति स्त्री [प्रशान्ति] नाश, विनाश । प्रशान्त करनेवाला । पसंधण न [प्रसन्धान] सतत प्रवर्तन । पसमिक्ख सक [प्रसम् + ईक्ष्] प्रकर्ष से पसंस सक [प्रशंस्] श्लाघा करना। देखना। पसंस वि [प्रशस्य] प्रशंसा-योग्य । पुं. लोभ । पसमिण वि [प्रशमिन्] प्रशान्त करनेवाला, पसंसय वि [प्रशंसक] प्रशंसा करनेवाला । । नाश करनेवाला। पसंसा स्त्री [प्रशंसा] श्लाघा, स्तुति, वर्णन । | पसम्म देखो पसम = प्र+शम् । पसज्ज' देखो पसंज। पसय पुं [दे] मृग-विशेष । मृग-शिशु । पसज्झ । अ [प्रसह्य] खुले तौर से, प्रकट | पसय वि [प्रसृत] फैला हुआ । पसज्झं । रीति से । बलात्कार । पसर अक [प्र+स] फैलना । पसज्झचेय न [प्रसह्यचेतस् ] धर्म-निरपेक्ष | | पसर पुं [प्रसर विस्तार, फैलाव । चित्त, कदाग्रही मन । पसरेह पुं [दे] किंजल्क। पसढ वि [प्रसह्य अनेक दिन रखकर खुला | पसल्लिअ वि [दे] प्रेरित । किया हुआ। पसव सक [प्र + सू] जन्म देना, पसढ वि [प्रशठ] अत्यन्त शठ । पसव : अप) सक [प्र + विश्] प्रवेश करना । पसढं देखो पसज्झ । न. फूल । पसढिल वि [प्रशिथिल] विशेष ढीला। पसव [दे] देखो पसय । °नाह पुं [°नाथ] पसण्ण वि [प्रसन्न] खुश, स्वस्थ । निर्मल । सिंह । °राय { [राज] सिंह। °चंद पुं [°चन्द्र] भगवान् महावीर के समय पसवडक्क न [दे] विलोकन । का एक राजर्षि । पसवण न [प्रसवन] प्रसूति । पसण्णा स्त्री [प्रसन्ना] मदिरा। पसविय वि [प्रसूत] जिसने जन्म दिया हो पसत्त वि [प्रसक्त] चिपका हुआ । आसक्त । वह । देखो पसूअ = प्रसूत । आपत्ति ग्रस्त, अनिष्ट-प्राप्ति के दोष से युक्त। पसीवर वि [प्रसवित] जन्म देनेवाला । पसत्थ वि [प्रशस्त] प्रशंसनीय । श्रेष्ठ । पसस्स देखो पसंस। पसत्थि स्त्री [प्रशस्ति] वंशवर्णन । पसस्स वि [प्रशस्य] प्रभूत शस्यवाला । पसत्थु पुं [प्रशास्त] लेखाचार्य, गणित का | पसाइअ वि [प्रसादित] प्रसन्न किया हुआ। अध्यापक । धर्म-शास्त्र का पाठक । मन्त्री। प्रसन्न होने के कारण दिया हुआ । पसप्प पुं [प्रसर्प] विस्तार, फैलाव ।। पसाइआ स्त्री [दे] भिल्ल के सिर पर का पर्णपसप्पग वि [प्रसर्पक] प्रकर्ष से जानेवाला, | पुट, भिल्लों की पगड़ी । मुसाफिरी करनेवाला । विस्तार को प्राप्त | पसाम वि [प्रशाम्] शान्त होनेवाला । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy