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________________ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष पसाय-पसेविआ पसाय सक [प्र+सादय् ] प्रसन्न करना। । समाधान. आक्षेप का परिहार । पसाय पुं [प्रसाद] प्रसन्नता, खुशी। कृपा, | पसिस्स देखो पसीस।। मेहरबानी । प्रणय । पसीअ देखो पसिअ = प्र + सद् । पसार सक [प्र + सारय] पसारना, फैलाना । | पसीस पुं [प्रशिप्य] शिष्य का शिष्य । पसास सक [प्र + शासय् ] शासन करना। पसु पुं [पशु] जन्तु-विशेष, सींग पूछवाला शिक्षा देना । पालन करना। प्राणी, चतुष्पाद प्राणि-मात्र । बकरा । भूय पसाह सक [प्र + साधय्] बस में करना । वि[भूत] पशु-तुल्य । 'मेह पुं[°मेध] जिसमें सिद्ध करना। पशु का भोग दिया जाता हो वह यज्ञ । °वइ पसाहग वि [प्रसाधक] साधक, सिद्ध करने- | पुं [°पति] महादेव ।। वाला । °तम वि. उत्कृष्ट साधक । न. करण- | पसुत्त वि [प्रसुप्त] सोया हुआ । कारक । देखो पसाय। पसुत्ति स्त्री [प्रसुप्ति] कुष्ठ रोग । नखादिपसाहण न [प्रसाधन] सिद्ध करना, साधना । | विदारण होने पर भी अचेतनता । उत्कृष्ट साधन । अलंकार । भूषण आदि की | पसुव (अप) देखो पसु ।। सजावट । पसुहत्त पुं [दे] वृक्ष । पसाहय देखो पसाहग । सजानेवाला । | पसू सक [प्र + सू] जन्म देना, प्रसव करना। पसाहा स्त्री [प्रशाखा] शाखा की शाखा, | पसू वि [प्रसू] प्रसव-कर्ता, जन्म-दाता । छोटी शाखा। पसूअ न [दे] फूल । पसाहिल्ल वि [प्रशाखिन्] प्रशाखा-युक्त । पसूअ वि [प्रसूत] उत्पन्न । पसिअ अक [प्र + सद्] प्रसन्न होना । | पसूअण न [प्रसवन] जन्म-दान । पसिअ अक [प्र + सद्] प्रसन्न होना । पसूइ स्त्री [प्रसूति] प्रसव, उत्पत्ति । एक कुष्ठ पसिअ वि [प्रसृत] फैला हुआ, विस्तीर्ण । रोग, नखादि से विदारण करने पर भी दुःख पसिअ न [दे] पूग-फल, सुपारी । का असंवेदन, चमड़ी का मर जाना । रोग पसिंच सक [प्र + सिच्] सेचन करना । पुं. रोग-विशेष । पसिडि (दे) देखो पसंडि। पसूइय पुं [प्रसूतिक] वातरोग-विशेष । पसिक्खअ वि [प्रशिक्षक] सीखनेवाला । पसूण न [प्रसून] पुष्प । पसिज्जण न [प्रसदन] प्रसन्न होना । पसेअ ' [प्रस्वेद] पसीना । पसिढिल देखो पसढिल। | पसेढि स्त्री [प्रश्रेणि] श्रवान्तर श्रेणि-पंक्ति । पसिण पुंन [प्रश्न] पृच्छा। दर्पण आदि में देवता का आह्वान, मन्त्रविद्या-विशेष । । पसण पु[प्रसेन] भगवान् पार्श्वनाथ के प्रथम °विज्जा स्त्री [विद्या] मन्त्रविद्या-विशेष । । श्रावक का नाम । पसिण न [प्रश्न] मन्त्रविद्या के बल से | पसेणइ पं [प्रसेनजित्] कुलकर-पुरुष । यदुवंश स्वप्न आदि में देवता के आह्वान द्वारा जाना | के राजा अन्धकवृष्णि का एक पुत्र । हुआ शुभाशुभ फल का कथन । पसेणि स्त्री [प्रश्रेणि] अवान्तर जाति । पसिणिय वि [प्रश्नित] पूछा हुआ। पसेयग देखो पसेवय। पसिद्ध वि [प्रसिद्ध] विख्यात, विश्रुत । प्रकर्ष | पसेव सक [प्र+ सेव्] विशेष सेवा करना । से मुक्ति को प्राप्त, मुक्त । पसेवय पं [प्रसेवक] कोथला, थैला । पसिद्धि स्त्री [प्रसिद्धि] ख्याति । शंका का ' पसेविआ स्त्री [प्रसेविका] थेली, कोषली । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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