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________________ ५६४ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष पवोत्त-पसंग पवोत्त पुं प्रपौत्र] पौत्र का पुत्र । पव्वय देखो पव्वइअ। पव्व पुंन [पर्वन्] ग्रन्थि, गाँठ। उत्सव । पव्वय । पुन [पर्वत, °क] पहाड़ । पुं. पूर्णिमा और अमावास्या तिथि। पूर्णिमा पव्वयय , द्वितीय वासुदेव का पूर्व-भवीय और अमावास्यावाला पक्ष । अष्टमी, नाम । एक ब्राह्मण-पुत्र का नाम । एक चतुर्दशी, पूर्णिमा और अमावास्या का दिन । राजा । एक राज-कुमार । राय पुं [°राज] मेखला, गिरिमेखला। दंष्ट्रा-पर्वत । संख्या- | मेरु पर्वत । “विदुग्ग पुंन [°विदुर्ग] पहाड़विशेष । °बीय पुं[°वीज] इक्षु-आदि वृक्ष, | वाला प्रदेश । जिसका पर्व-प्रन्थि-ही उत्पत्ति का कारण पव्वयगिह न [पर्वतगृह] पर्वत की गुफा । होता है । °राहु पुं. राहु-विशेष, जो पूर्णिमा | | पव्वह सक [प्र+व्यथ्] पीड़ना, दुःख देना । और अमावास्या में क्रमशः चन्द्र और सूर्य का पव्वा स्त्री [पर्वा] लोकपालों की एक बाह्य ग्रहण करता है। परिषद् । पव्वइ न [पर्वतिन्] गोत्र-विशेष, काश्यप गोत्र पव्वाइअ वि [प्रवाजित] जिसको दीक्षा दी की एक शाखा । पुंस्त्री. उस गोत्र में उत्पन्न । गई हो वह । न. दीक्षा देना। देखो पव्वपेच्छइ। पव्वाइअ वि [म्लान] विच्छाय, शुष्क । पव्वइ देखो पव्वई। पव्वाइआ स्त्री [प्रवाजिका] संन्यासिनी । पव्वइअ वि [प्रवजित] दीक्षित, संन्यस्त । पव्वाडि देखो पव्वालि। गत, प्राप्त । पव्वाण वि [म्लान] सूखा । पव्वइंद पुं [पर्वतेन्द्र] मेरु पर्वत । पव्वाय देखो पवाय = प्र+वा । पव्वइग देखो पव्वइअ। पव्वाय सक [प्र+वाजय] दीक्षित करना । पव्वइसेल्ल न [दे] बाल-मय कंडक- पव्वाय अक [म्लै सूखना । तावीज। पव्वाय वि [म्लान, प्रवाण] शुष्क, सूखा । पव्वई स्त्री [पार्वती] शिव-पत्नी। पव्वाय पुं [प्रवात प्रकृष्ट पवन । पव्वंग पुंन [पर्वाङ्ग] संख्या-विशेष । पव्वाल सक [छादय्] ढकना । पव्वक । पुन [पर्वक] वाद्य-विशेष । ईख | ख | पव्वाल सक [प्लावय] खूब भिजाना । पव्वग , जसा ग्रन्थिवाला वनस्पात । तृण- | पव्वाव सक [प्र+व्राजय] दीक्षित करना । विशेष । पव्वावण न [दे] प्रयोजन । पव्वग वि [पार्वक] पर्व--ग्रन्थि-गाँठ का पव्वाह सक [प्र+वाहय्] बहाना । बना हुआ। पव्विद्ध वि [दे] प्रेरित । पव्वज्ज पुं [दे] नख । बाण । बाल-मृग ।। पव्विद्ध वि [प्रवृद्ध] महान्, बड़ा । पव्वज्जा स्त्री [प्रव्रज्या] गमन, गति । दीक्षा, संन्यास । पव्विद्ध न [प्रविद्ध] गुरु-वन्दन का एक दोष, पव्वणी स्त्री [पर्वणी] कार्तिकी आदि पर्व- | वन्दन को समाप्त किये बिना ही भागना । तिथि । पव्वीसग न [दे.पव्वीसग] वाद्य-विशेष । पव्वपेच्छइ न [पर्वप्रेक्षकिन्] देखो पव्वइ।। पसइ स्त्री [प्रसूति] दो प्रसृति-पसर का पव्वय सक [प्र+व्रज्] जाना, गति करना। एक परिमाण । पूर्ण अञ्जलि, दो हस्त-तलदीक्षा लेना, संन्यास लेना। अंजुरी मिला कर भरी हुई चीज । पव्वय देखो पव्वग। | पसंग पुंन [प्रसङ्ग] परिचय, उपलक्ष । संगति, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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