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________________ ओसण-ओसिय संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष १९९ ओसण न [दे] उद्वेग, खेद । नगरी-विशेष । महिहर पुं [ महिधर] ओसण्ण वि [अवसन्न] खिन्न। शिथिल, पर्वत विशेष ।। ढीला । निमग्न । न. एकान्त । ओसहिअ वि [आवसथिक] चन्द्रार्घ-दानादि ओसण्ण वि दे] अटित, खण्डित । व्रत को करनेवाला। ओसण्णं अ [दे] प्रायः । ओसा स्त्री [दे] ओस । हिम । ओसत्त वि [अवसक्त] सम्बद्ध, संयुक्त। ओसाअ पुं]दे] प्रहार की पीड़ा । ओसधि देखो ओसहि। ओसाअ पुं [अवश्याय] हिम, ओस । ओसद्ध वि [दे] गिराया हुआ। ओसाअंत वि [दे] अँभाई खाता हुआ आलसी। ओसप्पिणी स्त्री [अवसर्पिणी] दश कोटा- बैठता । वेदना-युक्त ! कोटि सागरोपमपरिमित काल-विशेष, जिसमें ओसाअण वि [दे] जमीन का मालिक । सर्व पदार्थों के गुणों की क्रमशः हानि होती आपोशान । जाती है। ओसाण न [अवसान] अन्त । समीपता । गुरु ओसम सक [उप + शमय] उपशान्त करना। के समीप स्थान, गुरु के पास निवास । ओसर अक [अव+त] नीचे आना। अव- ओसाणिहाण विदे] विधि-पूर्वक अनुष्ठित । तरना। ओसाय पुं[अवश्याय] ओस । ओसर अक [अप + स] अपसरण करना, पोछे ओसायण न [अवसादन] परिशाटन, नाश । हटना । सरकना, खिसकना, फिसलना। ओसार सक [अप + सारय] दूर करना । ओसर सक [अव + सृ] आना, तीर्थकर आदि ओसार पुंदे] गो-वाट, गो-बाड़ा। महापुरुष का पधारना । ओसार देखो ऊसार = उत्सार । ओसर पुं [अवसर] अवसर, समय । अन्तर । ओसार पुं [अवसार] कवच, बख्तर । ओसरण न [अवसरण] जिन-देव का उपदेश ओसारिअ वि [अवसारित] अवलम्बित, स्थान । साधुओं का एकत्रित होना। लटकाया हुआ। ओसरण न [अपसरण] हटना, दूर होना। ओसास (अप) देखो ओवास = अवकाश । वि. दूर करनेवाला। ओसिअ वि [दे] अबल । अपूर्व ! ओसरिअ वि [दे] आकीर्ण, व्याप्त । आँख के ओसिअ वि [उषित] बसा हुआ, रहा हुआ। इशारे से संकेतित या इंगित । अधोमुख । न. व्यवस्थित । आँख का इशारा। ओसिअंत वकृ. [अवसीदत्पीड़ा पाता हुआ । ओसरिअ वि [उपसत] सम्मुखागत । | ओसिंघिअ वि [दे] सूंघा हुआ । ओसरिआ स्त्री [दे] अलिन्दक, बाहर के दर- ओसिंचित्तु वि [अपसेचयितु] अपसेक करनेवाजे का प्रकोष्ठ । वाला। ओसव पुं [उत्सव] उत्सव, आनन्द-क्षण। ओसिक्खिअ न [दे] गति-व्याघात । अरतिओसव देखो ओसम। निहित । ओसविय वि [उच्छयित] ऊंचा किया हुआ। ओसित्त वि [अवसिक्त] भिगोया हुआ, सिक्त। ओसबिअ वि[दे]शोभा-रहित । न. अवसाद । । ओसित्त वि [दे] उपलिप्त । ओसह न [औषध] दवाई, भैषज । ओसिय वि [अवसित] पर्यवसित । उपशान्त । ओसहि', ही स्त्री [ओषधि] वनस्पति । जीत, पराभूत । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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