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________________ १८६ एक्केल्ल देखो एग। संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष एक्केक्कम-एग एक्केकम वि [दे] परस्पर । [भूत] एकीभूत । समान । °मण वि [°मनस्] एकाग्रचित्त । मेग वि [°एक] एक्कोल्ल । प्रत्येक । °य वि [क] एकाकी । °य वि [ग] अकेला जानेवाला । °यर वि [°तर] एग स [एक] एक, प्रथम-संख्या । एकाकी । दो में से कोई भी एक । °या अ [°दा] अद्वितीय । असहाय । अन्य । समान । "इय देखो एग । °इय वि[क]अकेला । क्खरिय एक समय में । °राइय वि [°रात्रिक] एकवि [°ाक्षरिक] एक अक्षरवाला। खंधी स्त्री रात्रि-सम्बन्धी । °राय न [ रात्र] एक [°स्कन्ध] एक स्कन्धवाला (वृक्ष वगैरह) । रात्र । 'ल्ल वि [एक] एकाकी। विह वि °खुर वि. एक खुरवाला ( गौ वगैरह पशु ) । [विध] एक प्रकार का। विहारि वि °ग वि [क] एकाकी। °ग्ग वि [°ाग्र] [विहारिन्] एकल-विहारी। °वीसइम वि तल्लीन, तत्पर । °चवत्रु वि [°चक्षुष्क] [विंशतितम] एक्कीसवाँ । °वीसा स्त्री एक आँखवाला । °चत्ताल वि [चत्वारिंश] [विंशति] एक्कीस । °सट वि [°षष्ट] एकतालीसवाँ । °चर वि. एकाकी विहरने एकसठवाँ । °सट्ठि स्त्री [°षष्टि] एकसठ । वाला । °चरिया स्त्री [चर्या] एकाकी सत्तर वि [°सप्तत] एकहतरवाँ । °समइय विहरना । °चारि वि [°चारिन्] अकेल वि [°सामयिक] एक समय में होनेवाला । विहारी। °चूड पुं. विद्याधर वंश का एक °सरिया स्त्री [°सरिका] एकावली, हारराजा । °च्छत्त वि [°च्छत्र] पूर्ण प्रभुत्व विशेष । साडिय वि [°शाटिक] एक वस्त्रवाला। अद्वितीय । °जडि वि [°जटिन्] वाला । °सिअं अ [°दा] एक समय में । महाग्रह-विशेष । °जाय वि [°जात] अकेला, °सेल पुं [शैल] पर्वत-विशेष । °सेलकूड निस्सहाय । "ट्ट वि [°स्थ] इकट्ठा । 8 वि पुंन [°शैलकूट] एक शैल पर्वत का शिखर[°ार्थ] एक अर्थवाला, पर्याय-शब्द । टु, विशेष । °सेस पुं [शेष] व्याकरण-प्रसिद्ध "टु अ [°त्र] एक स्थान में। °ट्टिय वि समास-विशेष । हा अ [°धा] एक प्रकार [°र्थिक] एक ही अर्थवाला, पर्याय-शब्द । का । हुत्त अ [°सकृत्] एक बार । °ाणिअ द्विय वि [°स्थिक] जिसके फल में एक ही वि [°किन्] अकेला। दस त्रि. ब. बीज होता है ऐसा आम वगैरह का पेड़ । [दशन्] ग्यारह । दसुत्तरसय वि °णासा स्त्री [°नासा] एक दिक्कुमारी । [दशोत्तरशततम] एक सौ ग्यारहवाँ । °त्त न [५] एक ही स्थान में । "त्थ देखो भोग पुं [°भोग] एकत्र-बन्धन । °ामोस 'टु । °पए अ [°पदे] युगपत् । °पक्ख वि वि [°Tमर्श] प्रत्युपेक्षणा का एक दोष, वस्त्र [°पक्ष] असहाय । ऐकान्तिक, अविरुद्ध । को मध्य में ग्रहण कर दोनों आँचलों को हाथ °पन्नास स्त्रीन [°पञ्चाशत्] एकावन । से घसीट कर उठाना । °ायय वि [°ायत] पन्नासइम वि [ पञ्चाशत्तम] एकावनवाँ । एकत्र सम्बद्ध । परस देखो [°ादस] । °पाइअ वि [°पादिक] एक पाँव ऊँचा Tरसी स्त्री [दशी] एकादशी। गवण्ण रखनेवाला । °पासग वि [°पार्श्वक] एक | स्त्रीन [°पञ्चाशत्] एकावन । °ावलि, ली ही पार्श्व की भूमि से सम्बन्ध रखनेवाला। स्त्री [वलि, ली] विविध प्रकार की मणियों °पासिय वि [पाश्विक] देखो पूर्वोक्त अर्थ । से ग्रथित हार। वलीपविभत्ति न भत्त न [ भक्त] एकासन व्रत । भूय वि | [वलीप्रविभक्ति] नाटक-विशेष । °वाइ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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