SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 141
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२२ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष आवण-आवा मजबूत । आवर सक [आ + वृ] आच्छादन करना। आवण पुं [आपण] हाट । बाजार । आवरण न. ढकनेवाला, तिरोहित करनेवाला । आवणिय पुं [आपणिक] गौदागर, व्यापारी। वास्तु-विद्या। आवण्ण वि [आपन्न] आपत्ति-युक्त । प्राप्त । | आवरिसण न [आवर्षण] सिंचन । सुगन्ध जल °सत्ता स्त्री [सत्त्वा] गर्भवती स्त्री। की वृष्टि । आवण्ण वि [आपन्न] आश्रित । आवरेइया स्त्री [दे] करिका, मद्य परोसने का आवत्त सक [आ + वृत्] आना । पात्र-विशेष । आवत्त अक [आ + वृत्] परिभ्रमण करना। आवलण न [आवलन] मोड़ना। बदलना। चक्राकार घूमना । सक. पठित आवलि स्त्री. पङ्क्ति । पु. एक विद्यार्थी का पाठ को याद करना । घुमाना। नाम। आवत्त पुं [आवत्तं] चक्राकार परिभ्रमण । आवलिआ स्त्री [आवलिका] श्रेणी । परिमुहूर्त विशेष । महाविदेह क्षेत्रस्थ एक विजय | पाटो । समय-विशेष, एक सूक्ष्म काल-परि(प्रदेश) का नाम । एक खुरवाला पशु विशेष । माण । 'पविट्ठ वि [प्रविष्ट] श्रेणी से व्यवएक लोकपाल का नाम । पर्वतविशेष । मणि स्थित । 'बाहिर वि [बाह्य] विप्रकीर्ण, का एक लक्षण । ग्राम-विशेष । शारीरिक श्रेणि-बद्ध नहीं रहा हुआ। चेष्टा-विशेष, कायिक व्यापार-विशेष । कूड | आवलिय वि [आवलित] वेष्टित । न [°कूट] पर्वत-विशेष का शिखर-विशेष । आवली स्त्री. पंक्ति । रावण की एक कन्या यंत बक ["यमान] दक्षिण की तरफ | __ का नाम । चक्राकार घूमनेवाला। आवस सक [आ + वस्] रहना, वास करना। आवत्त पुंन [आवर्त] एक तरह का जहाज । आवसह पुं [आवसथ] घर, आश्रय, स्थान । न. लगातार २५ दिनों का उपवास । मठ, संन्यासियों का स्थान । आवत्त न [आतपत्र छत्र, छाता। आवमहिय पं [आवसथिक] गृहस्थ, गृही। आवत्तण न [आवर्त्तन] सक्राकार भ्रमण ।। संन्यासी। पेढ़िया स्त्री [°पीठिका] पीठिका-विशेष । आवसिय । वि [आवश्यक] अवश्य कर्त्तव्य, आवत्तय पुं [आवर्तक] देखो आवत्त । वि. आवस्सग जरूरी । न. सामयिकादि धर्माचक्राकार भ्रमण करनेवाला। आवस्सय 'नुष्ठान, नित्य-कर्म । जैन ग्रन्थआवत्ता स्त्री [आवर्ता] महाविदेह-क्षेत्र के | विशेष, आवश्यक सूत्र । °णुओग पुं [°ानुएक विजय (प्रदेश) का नाम । योग] आवश्यक सूत्र की व्याख्या । आवत्ति स्त्री [आपत्ति] दोप-प्रसंग । कष्ट ।। आवस्सय पुन [ आपाश्रय ] ऊपर देखो। उत्पत्ति । आश्रय । आवत्ति स्त्री [आपत्ति प्राप्ति । आवस्सिया स्त्री [आवश्यकी] सामाचारीआवदि स्त्री [आवृति] आवरण । विशेष, जैन साधु का अनुष्ठान-विशेष । आवय पु [आवर्त] देखो आवत्त। . आवह सक [ आ+वह ] धारण करना, आवय देखो आवड। वहन करना। आवया स्त्री [आपगा] नदी।। आवह वि. धारण करनेवाला । आवया स्त्री [आपद्] विपद्, ख । | आवा सक [आ+पा] पीना । भोग में लाना, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy