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________________ आलोअ-आवडिअ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष १२१ करना । आलोचना करना । | आवइ स्त्री [आपद्] आपत्ति । आलोअ पुं [आलोक] तेज, प्रकाश । विलोकन, आवंग पुं[दे] अपामार्ग, वृक्ष-विशेष,लटजीरा । अच्छी तरह देखना । पृथ्वी का समान-भाग । आवंडु वि [आपाण्ड] थोड़ा सफेद, फोका । गवाक्षादि प्रकाशस्थान । जगत्, संसार । आवंडुर वि [आपाण्डुर] ऊपर देखो । ज्ञान । आवंत देखो जावंत । आलोअग । वि [आलोचक] आलोचना | आवग्गण न [आवल्गन] अश्व पर चढ़ने की आलोअय ) करनेवाला । कला। आलोअण न [आलोकन] विलोकन, दर्शन, | आवच्चेज वि [अपत्यीय] अपत्य-स्थानीय । निरीक्षण । आवज देखो आओज्ज । आलोअणा स्त्री [आलोचना] देखना, आवज अक [अ + पद्] प्राप्त होना, लागु बतलाना । प्रायश्चित्त के लिए अपने दोषों को होना। गुरू को बता देना । विचार करना। आवज सक [आ + वजं] सम्मुख करना । आलोइत्तु वि [आलोकयित] देखने वाला, प्रसन्न करना। द्रष्टा । आवज सक [आ + पद्] प्राप्त करना । - आलोइल्ल वि [आलोकवत्] प्रकाश-युक्त। आवज्ज वि [आवर्ज] प्रीत्युत्पादक । आलोग देखो आलोअ = आलोक । 'नयर आवजण न [आवर्जन] सम्मुख करना । न [°नगर नगर-विशेष । प्रसन्न करना। उपयोग, ख्याल । उपयोगआलोच देखो आलोअ = आ + लोच् । विशेष । व्यापार-विशेष । आलोड सक [आ + लोडय] हिलोरना, मन्थन | आवजिय वि [आवजित] प्रसन्न किया हमा। करना। अभिमुख किया हुआ। करण न. व्यापारआलोयण न [आलोकन] गवाक्ष । विशेष । आलोल सक. देखो आलोड। आवज्जिय देखो आउजिय = आतोधिक । आलोव सक [आ+ लोपय] आच्छादित | आवजीकरण न [आवर्जीकरण] उपयोगकरना। विशेष या व्यापार-विशेष का करना, उदीरआलोव देखो आलोअ = आलोक । णावलिका में कर्म-प्रक्षेप रूप व्यापार । आव वि [यावत्] जितना। आवट्ट अक [आ + वृत्] चक्र की तरह धूमना, आव अ [यावत्] जब तक, जब लग। कह | फिरना । विलीन होना । सक. शोषण करना, वि [°कथ] देखो कहिय । °कहं अ सुखाना । पीड़ना, दुःखी करना । [कथम्] यावज्जीव । कहा स्त्री [कथा] | आवट्ट देखा आवत्त ।। जीवन-पर्यन्त । कहिय वि [कथिक] | आवट्टिआ स्त्री [दे] नवोढ़ा । परतन्त्र स्त्री। यावज्जीविक, जीवन-पर्यन्त रहनेवाला। | आवड देखो आवत्त-आवर्त । आव पुं [आप] प्राप्ति, लाभ । जल का समूह । | आवड सक [आ + पत्] पास में आना, 'बहुल न. देखो आउ-बहुल । आगमन करना । आ लगना। गिरना । आव सक [आ + या] आना, आगमन करना। | आवणवीहि स्त्री [आपणवोथि] हट्ट-मार्ग, आवआस सक [उप + गूह] आलिंगन | बाजार । रथ्या-विशेष, एक तरह का मुहल्ला। करना । | आवडिअ वि [दे] संगत, सम्बद्ध । सार, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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