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________________ ११८ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष आराह-माल आराह वि [आराध्य] आराधन-योग्य । आरेइअ वि [दे] मुकुलित, संकुचित । भ्रान्त । आराहग वि [आराधक] आराधन करने | मुक्त । रोमाञ्चित । वाला । मोक्ष का साधक । आरेण अ. समीप । पहले । प्रारम्भ कर । आराहण न [आराधन] सेवना । अनशन । आरोअ अक [उत् + लस्] विकसित होना, आराहणा स्त्री [आराधना] आवश्यक, साम- उल्लास पाना। यिक आदि षट्-कर्म। आरोअणा देखो आरोवणा। आराहणी स्त्री [आराधनी] भाषा का एक आरोइअ [दे] देखो आरेइअ। आरोग्ग सक [दे] भोजन करना। प्रकार। आरोग्ग न [आरोग्य] एकासन तप । आराहिय वि [आराधित] सेवित, परि आरोग्ग न [आरोग्य] नीरोगता। वि. रोगपालित । अनुरूप, योग्य । रहित । पुं. एक ब्राह्मणोपासक का नाम । आरिट्ठ वि [दे] गत, गुजरा हुआ । आरोग्गरिअ वि [दे] रँगा हुआ। आरिय न [आऋत] आगमन । आरोद्ध वि [दे] प्रवृद्ध, बढ़ा हुआ। गृहागत । आरिय देखो अज्ज = आर्य । आरिय वि [आरित] सेवित । आरोय न [आरोग्य] क्षेम, कुशल । नीरो गता। आरिय वि [आकारित] आहत । आरिया देखो अज्जा = आयी । आरोल सक [पुञ्ज] एकत्र करना । आरिल्ल वि [दे] पहले जो उत्पन्न हुआ हो । आरोव सक [आ+रोपय्] ऊपर चढ़ाना, ऊपर बैठाना । स्थापन करना । आरिस वि [आर्ष] ऋषि-सम्बन्धी । आरोवण न [आरोपण] ऊपर चढ़ाना । आरिहय देखो आरहंत । सम्भावना। आरुग्ग देखो आरोग्ग - आरोग्य । आरोवणा स्त्री [आरोपणा] ऊपर चढ़ाना। आरुट्ठ वि [आरुष्ट] क्रुद्ध, रुष्ट । प्रायश्चित्त-विशेष । प्रारूपणा, व्याख्या का एक आरुण्ण (अप) सक [ आ + श्लिष् ] आलि- | प्रकार । प्रश्न, पर्यनुयोग। ङ्गन करना। आरुभ देखो आरुह = आ + रुह । आरोस पुं [आरोष] म्लेच्छ देश-विशेष । वि. आरुवणा देखो आरोवणा। उस देश का निवासी। आरुस सक [ आ + रुष ] क्रोध करना. रोष | आरोसिअ वि [आरोषित] कोपित, रुष्ट किया करना। हुआ। आरुह सक [आ + रुह ] ऊपर चढ़ना, आरोह सक[आ + रुह.]ऊपर चढ़ना, बैठना । ऊपर बैठना। आरोह सक [ आ + रोहय् ] ऊपर चढ़ाना । आरुह वि [आरुह] उत्पन्न, उद्भूत, जात । आरोह पुं. सवार । हाथी, घोड़ा आदि पर आरुहण न [आरोहण] आरोपण, ऊपर चढ़नेवाला । ऊँचाई । लम्बाई । चढ़ाना । आरोह पुं [दे] स्तन, थन, चूंची। आरुहिय वि [आरोपित] स्थापित । ऊपर आरोहग वि [आरोहक] सवार होनेवाला । बैठाया हुआ। हाथी का रक्षक । आरुहिय । वि [आरूढ] ऊपर चढ़ा हुआ। आल न [दे] अनर्थक । आरूढ कृत, विहित । आल न [दे]छोटा प्रवाह । वि. मृदु । आगत । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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