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________________ ११६ आयाम न [आचाम्ल] तपो विशेष | थायम्बिल | आयाम न आदि का पानी । संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष [आचाम] अवस्रावण, चावल आयामणया स्त्री [आयामनता ] लम्बाई | आयामि वि [आयामिन् ] लम्बा । आयामुही स्त्री [आयामुखी ] इस नाम की एक नगरी । आयाय वि [आयात ] आया हुआ । आयार सक [ आ + कारय् ] बुलाना, आह्वान करना । आयार पुं [आकार] आकृति, रूप । इङ्गित, इशारा । आयार पुं [आकार ] 'अ' अक्षर | आयार पुं [आचार] आचरण, अनुष्ठान । चाल-चलन, रीत-भात । बारह जैन अङ्गग्रन्थों में पहला ग्रन्थ । निपुण शिष्य । क्खेवणी स्त्री [क्षेपणी] कथा का एक भेद । भंडग, 'भंडयन [ भाण्डक ] ज्ञानादि का उप करण साधन । आयारिमय न [आचारिमक ] विवाह के समय दिया जाता एक प्रकार का दान । आयारियवि [आकारित] आहूत । न. आह्वान-वचन, आक्षेप वचन । आयाव सक [आ + तापय् ] सूर्य के ताप में शरीर को थोड़ा तपाना । शीत, आतप आदि को सहन करना । आयाव पुं [आताप] असुरकुमार जातीय देवविशेष | आयाव पुं [आताप] आतप नामकर्म । आयावग वि [ आतापक] शीत आदि को सहन करनेवाला | आयावण न [आापन ] एक बार या थोड़ा आतप आदि को सहन करना । भूमि स्त्री. शीतादि सहन करने का स्थान । आयावल आयावलय पुं [दे] सबेर का तड़का, बालातप । Jain Education International आयाम - आरंभ आयास सक [ आ + यासय् ] तकलीफ देना, खिन्न करना । आयास पुं. तकलीफ, परिश्रम, खेद । परिग्रह, असन्तोष । 'लिवि स्त्री ['लिपि] लिपिविशेष | आयास देखो आयंस । आयास देखो आगास । तिलय न [तिलक] नगर- विशेष । आयासइत्तिअ वि [आयासयितृ] तकलीफ देनेवाला | आयासतल न [आकाशतल ] चन्द्रशाला, घर के ऊपर को खुली छत । आयासतल न [दे] प्रासाद का पृष्ठ भाग । आयासलव न [ दे] नीड़ । आयाम्म वि [आत्मघ्न] आत्मविनाशक । न. आधाकर्म दोष । आयाहिण न [आदक्षिण] दक्षिण पार्श्व से भ्रमण करना | पाहिण वि [' प्रदक्षिण] दक्षिण पार्श्व से भ्रमण कर दक्षिण पार्श्व में स्थित होनेवाला | पयाहिणा स्त्री [' प्रदक्षिणा ] दक्षिण पार्श्व से परिभ्रमण, प्रदक्षिणा । आयु देखो आउ = आयुष् । आर पुं. इह लोक, यह जन्म । मनुष्यलोक । नुकीली लोहे की कील | न. गृहस्थपन । आर पुं. मंगल ग्रह | चौथा नरक का एक नरकावास | वि. पूर्व का 'आरअवि [कारक ] कर्ता : आरओ अ [आरतस्] पूर्व, पहले । समीप में, शुरू करके, पीछे से । आरंदर वि [] अनेकान्त । संकट, व्याप्त । आरंभ सक [ आ + रभ्] शुरू करना । हिंसा करना । आरंभ पुं [आरम्भ] शुरूआत, प्रारम्भ । जीवहिंसा, वध । जीव, प्राणी । पाप कर्म । य वि [ज] पाप-कार्य से उत्पन्न । विजय पं For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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