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________________ ( ४ ) निरं शून्य थे, अतः अशुद्धियों की इतनी झंझट रहती थी कि-कुछ पूछिये नहीं । बड़ी मुश्किल से परिशिष्ट पूरा करा पाए । दूसरे पाँच भाषाओं के कारण पुस्तक भी काफी विशाल काय होती जा रही थी और गुजराती का काम अच्छा हो ही नहीं रहा था, अतः उसे छोड़ कर यह लघुता का उद्देश्य भी पूरा कर लिया गया। देहली में महाराष्ट्री प्राकृत तक ही मुद्रण हुआ । आगे के मुद्रण में विलंब होता देख देश्य प्राकृत खंड का मुद्रण यहाँ आगरा में ही करने का कोष प्रबंधक समिति ने प्रबंध किया । देहली की अपेक्षा पास रहने के कारण मैं यहाँ संशोधन कार्य ठीक कर सकता था। परन्तु इन दिनों मेरा स्वास्थ्य बिल्कुल खराब रहा । पशाब बन्द पड़ गया था, अतः ऑपरेशन कराया गया। बाद में बुखार आता रहा, दुर्बलता अधिक बढ़ गई थी। एक प्रकार से दो महीने तक, जब तक मुद्रण होता रहा, मैं बराबर अस्वस्थ ही रहा। अस्तु, शुद्धिपत्र बनाना, संशोधन करना, आदि कार्य मेरे स्नही शिष्य मुनि श्री पूनमचन्द्रजी तथा मुनि श्री डूगरसिंहजी ने काफी परिश्रम एवं संलग्नता के साथ किया है, अतः उक्त कोष के साथ इनका संस्मरण भी याद रक्खा जाय। कोष के सभी भागों का संपादन बड़ी सावधानी के साथ हुआ है। इसलिए, समाज में जैसा भी कुछ है कोष को आदर सम्मान भी मिला है। परन्तु प्रस्तुत भाग के संपादन में शीघ्रता से काम होना से और सबसे बढ़ कर मेरी लम्बी अस्वस्थता कारण एक मात्र प्रूफ रीडरों पर ही संशोधन का भार छोड़ देन से एवं प्रेस की लम्बी चौड़ी झंझटों के पैदा होते रहने से अशुद्धियाँ बहुत रह गई है, इस कारण शुद्धि पत्र काफी लम्बा हो गया है। फिर भी कहीं नवीन त्रुटियाँ दृष्टिगोचर हों तो विद्वान पाठक क्षमा करें और उल्लेखनीय त्रुटियों के लिए सूचित करें, ताकि यथावसर यथायोग्य संशोधन किया जा सके । सुज्ञ किं बहुना? ॐ शान्ति ! ॐ शान्ति !! ॐ शान्ति !!! लोहामंडी आगरा मागशिर पूर्णिमा १६६५ ॥ मुनि रत्नचन्द्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016017
Book TitleArdhamagadhi kosha Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnachandra Maharaj
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1988
Total Pages897
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati, English
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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