SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 10
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकाशक का निवेदन आभार प्रदर्शन श्रद्धेय भारतभूषण शतावधानी पं० मुनिश्री रवचंद्रजी महाराज को स्थानकवासी समाज में कौन नहीं जानता ? शतावधानी के रूप में समाज के सम्मुख आने वाले आप पहले व्यक्ति हैं, समाज की सर्व साधारण जनता भी श्रापके महान व्यक्तित्व से परिचित हैं । आप संस्कृत एवं प्राकृत, उभय भाषा के गंभीर अभ्यासी हैं । आपके भावनाशतक एवं कर्तव्य कौमुदी ग्रन्थ संस्कृत काव्य-कला की दृष्टि से बड़े ही महत्वपूर्ण है। अब तक अर्धमागधी भाषा का एक भी व्याकरण नहीं था, महाराष्ट्री प्राकृतिक ब्याकरणों के आधार पर ही अर्धमागधी भाषा के मूल आगम ग्रन्थों का अध्ययन होता था । आपने इस सम्बन्ध में भी प्रयत्न किया और जैन सिद्धान्त कौमुदी के नाम से अर्धमागधी का व्याकरण सटीक बना दिया। आपने आगमसाहित्य की जो सबसे बड़ी सेवा की हैं, वह आगमों के अर्धमागधी कोष का निर्माण । उक्त कोष ने विद्वत्संसार में काफी प्रतिष्ठा प्राप्त की है । भारत ही नहीं, बिदेशों तक में इसके गुण गौरव की चर्चा हुई। वास्तव में महाराज श्री का यह कार्य भविष्य की प्रजा को युग युग संस्मरणीय रहेगा । उक्त कोष के चार भाग पहले श्वे. स्था० जैन कान्फ्रेंस की ओर से प्रकाशित हो चुके हैं। अब यह पाँचवां भाग भी पाठकों की सेवा में पहुंच रहा है। यह भाग बहुत दिनों से बना तैयार था। परन्तु अर्थाभाव के कारण प्रकाशित नहीं हो सका था । हर्ष है कि वह महाराज श्री के चातुर्मास देहली ( सब्जीमंडी) के समय हुआ। अस्तु, महाराज श्री सं० १६६० में अजमेर मुनि सम्मेलन में भाग लेने के लिए उत्तर भारत में पधारे और उसके बाद क्रमशः सं० १६६० जयपुर, सं० १६६, अलवर, सं० १९६२ अमृतसर पंजाब, सं० १६६३ बलाचौर पंजाब में चातुर्मास करक मं० १६६४ वें का सब्जीमण्डी देहली चातुर्मास में लाला केदारनाथ रुगनाथदास जी ने कोष के प्रकाशन का समस्त भार अपने ऊपर उठाया और बाबू नेमीचन्द्र जी के प्रबन्ध में गयादत्त प्रेस में मुद्रण कार्य शुरू कर दिया गया । परन्तु बीच में कुछ अनावश्यक झंझटें होती रहीं, अतः ठीक व्यववस्था के लिए रायसाहब लाला रघुबीरसिंह की अध्यक्षता में बाबू आनन्दराज जी सुराना. लाला रघुनाथदास जी, बाबू कुञ्जलाल जी, बाबू लज्जाराम जी, बाबू नेमीचंद्र जी की एक कोष प्रबन्धक समिति स्थापित की। इसके बाद काय सुचारू रूप से चलने लगा। परन्तु चातुमास में ही कार्य समाप्ति की जो आशा थी वह पूर्ण न हो सकी और छपने का अधिक कार्य बाकी रह गया । चातुर्मास बाद महाराज श्री ने बनारस की ओर बिहार कर दिया, परन्तु स्वास्थ्य खराब हो जाने के कारण इस बर्ष का चातुर्मास आगरा में ही हुआ। इधर बिहार के बाद मुद्रण कार्य और भी धीमा पड़ गया, यह चातुर्मास भी समाप्त होने पाया, परन्तु कोष छप कर पूर्ण नहीं हो सका। फलतः महाराज श्री द्वारा संस्थापित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016017
Book TitleArdhamagadhi kosha Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnachandra Maharaj
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1988
Total Pages897
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati, English
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy