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________________ पारिणामिक पारिणामिक (ध.१/१,७,३/१६६/११); (गो.क./मू./८१५/६८); (नि.सा/ता, वृ/४१), (गो,जी/जी.प्र./८/२४/१५)। परिणाम अर्थात् स्वभाव ही है प्रयोजन जिसका वह पारिणामिक है. यह अन्वर्थ संज्ञा है। (न च वृ/३७५), (पंकात प्र/५६)। ध./१,७,१/१८५/३ जो चउहि भावेहि पुवुत्त हि वदिरित्तो जीवाजीवगओ सो पारिणामिओ णाम । =जो क्षायिकादि चारो भावोसे व्यतिरिक्त जीव अजीवगत भाव है, वह पारिणामिक भाव है। न. च वृ /३७४ कम्मज भावातीदं जाणगभाव विसेस आहार। त परिणामो जोवो अचेयणं भवदि इदराण ।३७४। =जो मजनित औदयिका दि भावोसे अतीत है तथा मात्र ज्ञायक भाव ही जिसका विशेष आधार है, वह जीवका पारिणामिक भाव है, और अचेतन भाव शेष द्रव्योका पारिणामिक भाव है। प.ध/उ /१७१ कृत्स्नमनिरपेक्ष. प्रोक्तावस्थाचतुष्टयात । आत्मद्रव्यत्वमात्रात्मा भाव. स्यात्पारिणामिक १७१। = कर्मोके उदय, उपशमादि चारो अपेक्षाओसे रहित केवल आत्म द्रव्यरूप ही जिसका स्वरूप है वह पारिणामिक भाव कहलाता है ।१७१। .. साधारण असाधारण पारिणामिक भाव निर्देश वचनाच्छुद्धनिश्चयेन नास्ति त्रय, मुक्तजीवे पुन सर्वथैव नास्ति, इति हेतोरशुद्वत्वं भण्यते । तत्र शुद्धाशुद्धपारिणामिकमध्ये शुद्धपारिणामिभावो ध्यानकाले ध्येयरूपो भवति ध्यानरूपो न भवति, कस्मात् ध्यानपर्यायस्य विनश्वरत्वात, शुद्धपारिणामिकस्तु द्रव्यरूपत्वादविनश्वर , इति भावार्थ । प्रश्न- शुद्ध पारिणामिक परमभावरूप जो शुद्ध निश्चयनयकी अपेक्षासे जीव गुणस्थान तथा मार्गणा रथानोसे रहित है ऐसा पहले कहा गया है और अब यहाँ भव्य-अभव्य रूपसे मार्गणाएँ भी आपने पारिणामिक भाव कहा, सो यह तो पूर्वापर विरोध है ? उत्तर-पूर्व प्रमगमे तो शुद्ध पारिणामिक भावकी अपेक्षासे गुणस्थान और मार्गणाका निषेध किया है, और यहॉपर अशुद्ध पारिणामिक भाव रूपसे भव्य तथा अभव्य ये दोनो मार्गणामें भी घटित होते है। प्रश्न-शुद्ध-अशुद्ध भेदसे पारिणामिक भाव दो प्रकारका नहीं है किन्तु पारिणामिक भाव शुद्ध ही है। उत्तर-वह भी ठीक नही, क्योकि, यद्यपि सामान्य रूपसे पारिणामिक भाव शुद्ध है ऐसा कहा जाता है तथापि अपवाद व्याख्यानसे अशुद्ध पारिणामिक भाव भी है। इसी कारण "जीव भव्याभव्यत्वानि च" (त सू./२/७) इस सूत्रमें पारिणामिक भाव तीन प्रकारका कहा है। उनमे शुद्ध चैतन्यरूप जो जीवत्व है वह अविनश्वर होनेके कारण शुद्ध द्रव्यके आश्रित होनेसे शुद्ध द्रव्याथिक नयकी अपेक्षा शुद्ध पारिणामिक भाव कहा जाता है। तथा जो कमसे उत्पन्न दश प्रकारके प्राणो रूप जीवत्व है वह जीवत्व, भव्यत्व तथा अभव्यत्व भेदसे तीन तरहका है और ये तीनो विनाशशील होनेके कारण पर्यायके आश्रित होनेसे पर्यायाथिक नयकी अपेक्षा अशुद्ध पारिणामिक भाव कहे जाते है। प्रश्न-इसकी अशुद्धता किस प्रकारसे है। उत्तर-- यद्यपि ये तीनो अशुद्ध पारिणामिक व्यवहार नयसे ससारी जीवमे है तथापि "सब्वे सुद्धा हु •सुद्धणया" (द्र, स/मू/१३)। इस बचनसे तीनो भाव शुद्ध निश्चयनयकी अपेक्षा नही है, और मुक्त जीवोमे तो सर्वथा ही नहीं है, इस कारण उनको अशुद्धता कही जाती है। उन शुद्ध तथा अशुद्ध पारिणामिक भावोमे-से जो शुद्ध पारिणामिक भाव है वह ध्यानके समय ध्येय यानी- ध्यान करने योग्य होता है, ध्यान रूप नही होता। क्योकि, ध्यान पर्याय विनश्वर है और शुद्ध पारिणामिक द्रव्यरूप होनेके कारण अविनाशी है, यह साराश है। (स. सा/ता.कृ./३२०/४०८/१५), (द्र.स./टो /५७/२३६/६)। त.सू./२/७ जीवभव्याभव्यत्वानि च । स सि./२/७ जीवत्व भव्यत्वमभव्यत्वमिति त्रयो भावा, पारिणामिका अन्यद्रव्यासाधारणा आत्मनो वेदितव्या । ननु चास्तित्वनित्यत्वप्रदेशवत्वादयोऽपि भावा' पारिणामिका सन्ति । अस्तित्वादय पुनर्जीवाजीवविषयत्वात्साधारणा इति चशब्देन पृथग्गृह्यन्ते । - जीवत्व, भव्यत्व और अभव्यत्व ये तीन पारिणामिक भावके भेद है।७। ये तीनो भाव अन्य द्रव्योमे नही होते इसलिए आत्माके (असाधारण भाव) जानने चाहिए। (रा वा /२/७/१/११०/१६), (ध ५/१,७,१/१६२/४ ), (गो. क / ८१४/६६०); (त. सा/२/८), (नि. सा/ता. वृ/४१) । अस्तित्व, नित्यत्व और प्रदेशवत्त्व आदिक भी पारिणामिक भाव है। ये अस्तित्व आदिक तो जीव और अजीब दोनोमे साधारण है इसलिए उनका 'च' शब्दके द्वारा अलगसे ग्रहण किया है। रा. वा./२/७/१२/१११/२८ अस्तित्वान्यत्व-कर्तृत्व-भोक्तृत्व-पर्यायवत्त्वासर्वगतत्वानादिसंततिबन्धनबद्धत्व-प्रदेशवत्त्वारूपत्व - नित्यत्वादिसमुच्चयार्थश्चशब्द' ।१२। =अस्तित्व, अन्यत्व, कतृत्व, भोक्तृत्व, पर्यायवत्त्व, असर्वगतत्व अनादिसन्ततिबन्धनबद्धत्व, प्रदेशवत्त्व, अरूपत्व, नित्यत्व आदिके समुच्चयके लिए सूत्र में च शब्द दिया है। ३. शुद्धाशुद्ध पारिणामिक भाव निर्देश द्र. सं./टी./१३/३८/११ शुद्धपारिणामिकपरमभावरूपशुद्धनिश्चयेन गुणस्थानमार्गणास्थानरहिता जीवा इत्युक्तं पूर्वम, इदानीं पुनर्भव्याभव्यरूपेण मार्गणामध्येऽपि पारिणामिकभावो भणितं इति पूर्वापरविरोध' । अत्र परिहारमाह-पूर्व शुद्धपारिणामिकभावापेक्षया गुणस्थानमार्गणानिषेध कृत इदानी पुनर्भव्याभव्यत्वद्वयमशुद्धपारिणामिकभावरूप मार्गणामध्येऽपि घटते। ननु-शुद्धाशुद्धभेदेन पारिणामिकभावो द्विविधो नास्ति किन्तु शुद्ध एव, नैव-यद्यपि सामान्य रूपेणोत्सर्गव्याख्यानेन शुद्धपारिशामिकभावः कथ्यते तथाप्यपवादव्याख्यानेनाशुद्धपारिणामिकभावोऽप्यस्ति । तथाहि- 'जीवभव्याभव्यत्वानि च" इति तत्वार्थ सूत्रे त्रिधा पारिणामिकभावो भणित', तत्र-शुद्धचैतन्यरूपं जीवत्वम विनश्वरत्वेन शुद्धद्रव्याश्रितत्वाच्छुद्धद्रव्यार्थिकसंज्ञ' शुद्धपारिणामिकभावो भण्यते, यत्पुन' कर्मजनितदशप्राणरूपं जीवत्व, भव्यत्वम, अभव्यत्वं चेति त्रयं, तद्विनश्वरत्वेन पर्यायाश्रितत्वात्पर्यायार्थिकसंज्ञस्त्वशुद्धपारिणामिकभाव उच्यते। अशुद्धत्वं कथमिति चेत-यद्यप्येतदशुद्धपारिणामिकत्रयं व्यवहारेण संसारिजीवेऽस्ति तथा 'सब्वे सुद्धा हु सुद्धणया' इति ४. पारिणामिक भाव अनादि निरुपाधि व स्वामाविक होता है पं का /त. प्र./१८ पारिणामिकस्त्वनादिनिधनो निरुपाधि' स्वाभाविक एव । पारिणामिक भाव तो अनादि अनत, निरुपाधि, स्वा भाविक है। द्र. सं टो./५७/२३६/८ यस्तु शुनद्रव्यशक्तिरूप शुद्धपारिणामिकपरम भावलक्षणपरमनिश्चयमोक्षः स च पूर्वमेव जीवे तिष्ठतीदानी भविष्यतीत्येवं न । शुद्ध द्रव्यकी शक्ति रूप शुद्ध पारिणामिक परमभाव रूप परमनिश्चय मोक्ष है वह तो जोवमे पहले ही विद्यमान है, वह परम निश्चय मोक्ष अब होगा ऐसा नहीं है। * अन्य सम्बन्धित विषय १. शुद्ध पारिणामिक भावके निर्विकल्प समाधि आदि अनेकों नाम । -मोक्षमार्ग/२/५। २. जीवके सर्व सामान्य गुण पारिणामिक है। -दे० गुण/२। ३ जीवत्व व सिद्धत्व । -दे० वह वह नाम। जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016010
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages639
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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