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________________ ४७५ ५. द्वीप पर्वतोंके नाम रस आदि लोक १०. मानुषोतर पर्वतके कूटों व देवोंके नाम (ति. प./४/२७६६+२७७६-२७८२); (रा. वा./३/३४/६/१६७/१४); (ह. पु./५/६०२-६१०): (त्रि. सा./६४२)। दिशा दिशा ति. प.व रा. वा. ह.पु. त्रि.सा. पश्चिम १. विजया | अशोका वैजयन्ती | सुप्रबुद्धा वेणुताल जयन्ती कुमुदा वरुण (धरण) अपराजिता पुण्डरीकिणी । भूतानन्द प्रभं करा रमणीय यम सुप्रभा आनन्दा सोम सर्वतोभद्रा । सुदर्शना ৰমণ देव बरुण उतर उत्तर ।१ रम्या सुमना दक्षिण ४ नोट- दक्षिणके कूटोंपर सौधर्म इन्द्रके लोकपाल, व्या उत्तरके कूटोंपर ऐशान इन्द्र के लोकपाल रहते हैं। पश्चिम वैडूर्य अश्मगर्भ सौगन्धी रुचक लोहित अंजन अंजनमूल कनक रजत स्फटिक अंक प्रवाल तपनीय रत्न प्रभजन वज्र वेलम्ब* सर्वरत्न* यशस्वान् यशस्कान्त यशोधर नन्द (नन्दन) नन्दोत्तर अशनिघोष सिद्धार्थ वैश्रवण (क्रमण) मानस (मानुष्य) सुदर्शन मेष ( अमोघ) सुप्रबुद्ध स्वाति उत्तर आग्नेय घेणु ईशान १२. कुण्डलवर पर्वतके कूटों व देवोंके नाम वेणुधारी हनुमान वेलम्म वेणुधारी (वेणुनीत) वायव्य नेऋत्य दृष्टि सं०१-(ति. ५/५/१२२-१२५); (त्रि. सा./६४४-६४५); दृष्टि सं०२-(ति. प./२/१३३); (रा. वा./३/३५/-/१९६/१०) (ह. पू./114६०-६६४)। नोट-रा.वा. व ह. पु. में सं. १९०१७ व १८ के स्थानपर क्रमसे सर्वरत्न, प्रभंजन व वेलम्ब नामक कूट हैं। तथा वेणुतालि, प्रभंजन व वेलम्ब ये क्रमसे उनके देव हैं। दिशा दृष्टि सं.) इष्टि सं. २ दक्षिण १. नन्दीश्वर द्वीपकी वापियाँ व उनके देव पूर्वादि क्रमसे (ति. प./२/६३-७८); (रा. वा./३/३५/-/१९८/९); (ह. पु./५/६५६६६५); (त्रि. सा./E48-६७०)। बन वज्रप्रभ कनक कनकप्रभ रजत रजतप्रभ (रजताभ) सुप्रभ महाप्रभ क अंकप्रभ मणि मणिप्रभ रुचक* रुचकाम* हिमवान्* स्व स्व कूट सदृश नाम विशिष्ट (त्रिशिरा) पंचशिर महाशिर महाबाहू पद्म पद्मोत्तर महापद्म वासुकी स्थिरहृदय महाहृदय श्री बृक्ष स्वस्तिक सुन्दर विशाल नेत्र पाण्डुक पाण्डर* पश्चिम दिशा ति, प.व. त्रि, सा. रा.वा. । उत्तर cdn0 मन्दर* नन्दा नन्दवती नन्दोत्तरा नन्दिघोष अरजा विरजा अशोका वीतशोका नन्दा सौधर्म नन्दवती ऐशान नन्दोत्तरा चमरेन्द्र नन्दिवोष वैरोचन विजया वरुण वैजयन्ती । यम जयन्ती सोम अपराजिता | वैश्रवण दक्षिण ام नोट-रा.वा. व. ह. पु. में उत्तर दिशाके कूटोका नाम क्रमसे स्फटिक, स्फटिकप्रभ, हिमवान् ब महेन्द्र बताया है। अन्तिम दो देवोंके नामों में पाण्डुकके स्थानपर पाण्डुर और पाण्डुरके स्थानपर पाण्डक बताया है। سه » जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016010
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages639
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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