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________________ लोक ५. द्वीप पर्वतोके नाम रस आदि ति. प , त्रि, सा ति. प., त्रि. सा. दिशा स १३. रुचकवर पर्वतके कूटों व देवों के नाम १. दृष्टि सं० १ की अपेक्षा (ति. प./२/१४५-१६३), (रा. वा /३/३५/-/१६६/२८), (ह पु/५/७०५-७१७), (त्रि. सा./६४-६५८)। देवियोका काम देवी देवी | उपरोक्त १ विमल | कनका की अभ्य २ नित्यालोक शतपदा न्तर दि | (शतहदा शाओमे ३ स्वयप्रभ । कनकचित्रा ४नित्योद्योत सौदामिनी दिशाएँ निर्मल करना देवियोका काम ति प.; त्रि सा. दिशा स. रा. वा. , ह पु देवियोका काम देवी कूट देवी उपरोक्त- १ रुचकरुचककीति की अभ्य २ मणि रुचककान्ता न्तर दि.३ राज्योत्तम रुचकप्रभा शाओमे ४ वैडूर्य | रुचका १ कनक विजया | वैडूर्य विजया | २ काचन | वैजयन्ती 2 काचन | वैजयन्ती ३ तपन | जयन्ती | कनक वैजयन्ती ४ स्वतिक- अपराजिता अरिष्टा अपराजिता दिशा सुभद्र नन्दा दिकस्वतिक नन्दा ६अजनमूल । नन्दवती | नन्दन नन्दोत्तरा अजन नन्दोत्तर अंजन आनन्दा वज्र नन्दिषेणा अजनमूल नन्दिवर्धना जन्म कल्याणपर भारी धारण करना देवियों का काम जातम करना झारी धारण करना जन्म कल्याकण पर दक्षिण | स्फटिक रजत २ कुमुद ४ नलिन | इच्छा | समाहार | अमोघ सुप्रबुद्ध मन्दिर विमल | सुप्त को | सुस्थिता | सुप्रणिधि सुप्रबुद्धा यशोधरा यशोधरा २ दृष्टि सं २ की अपेक्षा दर्पण धारण करना ५ पद्म ६| चन्द्र ७ वैश्रवण ८ वडूय जन्म कल्याणकपर दर्पण धारण करना लक्ष्मी शेषवती चित्रगुप्ता वसुन्धरा रुचक लक्ष्मीवती रुचकोत्तर | कीर्तिमती वसुन्धरा सप्रतिष्ठ (ति प/१६६-१७७); (राबा /३/३५/-1१६६/२४); (ह.पू/५/७०२-७२७)। ब पश्चिम १ अमोध इला २ स्वस्तिक सुरादेवी ३ मन्दर - पृथिवी पद्मा देवीका काम करना सुरा गजेन्द्र | देवीका काम ४ हैमवव याणकपर छत्र धारण करना एकनासा जन्म कल्याणकपर छत्र धारण लोहिताक्ष जगत्कुसुम पद्म पृथिवी नलिन पद्मावती (पद्म)। कुमुद कानना (कांचना) सौमनस नबमिका यशस्वी (शीता) भद्र भद्रा राज्योत्तम नवमी सीता सुदर्शन (ति प.) रा. वा. ह पु. दिशा सं । कूट | देवी देवी चारो १ नन्द्यावर्त | पद्मोतर दिशाओ २ स्वस्तिक सुभद्र सहस्ती | में ३ श्रीवृक्ष नील । ४ वर्धमान | अंजन गिरि अभ्यंतर दिशामें ३२ दे० पूर्वोक्त दृष्टि सं.१ में प्रत्येक दिशाके आठ कूट || विदि-1 ११ वैडूर्य रुचका शामें प्र- २ मणिभद्र विजया विजया दक्षिणा ३ रुचक रुचकाभा रूपसे ४ रत्नप्रभ । वैजयन्ती रत्न | रुचकान्ता मणिप्रभ रुचककान्ता ६ शरवरत्न | जयन्ती सर्वरत्न जयन्ती ७ रुचकोत्तम रुचकोत्तमा रुचकप्रभा ८ रत्नोञ्चय | अपराजिता उपरोक्त-१ विमल | कनका चित्रा के अभ्य-२ नित्यालोक | शतपदा कनकचित्रा न्तर भा (शतहदा) गमें चारो ३/ स्वयंप्रभ कनकचित्रा | त्रिशिरा |दिशा ४ नित्योद्योत | सौदामिनी सूत्रमणि भद्रा उत्तर १, विजय | अल भूषा २ वैजयन्त मिश्रके शो जयन्त | पुण्डरो किणी | ४ अपराजित | वारुणी ५ कुण्डलक आशा ६ रुचक सत्या रत्नकूट जन्म क्याणकपर चॅवर धारण करना स्फटिक | अलभूषा अक मिश्रकेशी अजन | पुण्डरी किणी कांचन । वारुणी रजत आशा कुण्डल | हो रुचिर (रुचक) जन्म क्ल्याणकपर चॅवर धारण करना| दिशाओमें उद्योत करना जातकर्म करनेवाली महत्त दिशाओं मे उद्योत करना जातकर्मकरनेवाली महत्तरिका 个个个 साल सुदर्शन ओमें ।। जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016010
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages639
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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