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________________ लोक ५. द्वीप पर्वतोके नाम रस आदि सं कूट । देव कूट देव ||सं. कूट देव स. ट १२. विद्युत्प्रभ गजदन्त-( मेरुसे कुल गिरिकी ओर) ५. सुमेरु पर्वतके वनों में कूटोंके नाम व देव (ति. प./४/२०४५-२०४६+२०५३+२०५४); (रा. वा./३/१०/१२/ (ति. प./४/१९६९-१९७७); (रा. वा./३/१०/१३/१७४/१६); १७५/१८), (ह. पु./५/२२२, २२७ ); (त्रि. सा./७३६-७४०)। (ह. पु./५/३२६); (त्रि. सा./६२७ ); (ज. प./४/१०५)। (ति. प. ह. पु., व त्रि. सा.) (रा. वा.) (ति प.) सोमनस वनमें (शेष ग्रन्थ) नन्दन वनमे १ | सिद्धायतन | जिनमन्दिर ।। सिद्धायतन जिनमन्दिर विद्या प्रभविद्या प्रभ 1२ | विद्यत्प्रभ विद्याप्रभ ।।१। नन्दन मेघ करा |१| नन्दन मेघकरी देवकुरु देवकुरु देवकुरु | देवकुरु मन्दर मेघवती २ मन्दर मेघवती पद्म पद्म निषध सुमेघा ३ | निषध सुमेघा तपन वारिषगादेवी विजय वारिषेणादेवी|४| हिमवान् मेघमालिनी । ४ हैमवत* मेघमालिनी स्वस्तिक बला देवी अपर विदेह ५ रजत तोयंधरा | ५ | रजत* तोयन्धरा शतउज्ज्व ल शतउज्ज्वल ७ स्वस्तिक स्वस्तिक रुचक विचित्रा (शतज्वाल) (शतज्वाल) शतज्वाल शतज्वाल ७/ सागरचित्र पुष्पमाला सागरचित्र पुष्पमाला* सीतोदा सीतोदा सीतोदा सीतोदा अनिन्दिता ८ वज्र आनन्दिता हरि Gmmoc00.00 ४] पद्म | पद्म बलादेवी विचित्रा वज्र ६] हरि *नोट-ह. पु. में बलादेशीके स्थानपर अचलादेवी कहा है । *नोट-ह. पु. मे सं. ४ पर हिमवत; सं.६ पर रजत; सं.८ पर चित्रक नाम दिये हैं। ज. प. में सं. ४ पर हिमवान. सं. ५ पर विजय नामक कूट कहे है। तया सं.७ पर देवीका नाम मणि१३. गन्धमादन गजदन्त-( मेरुसे कुलगिरिकी ओर ) मालिनी कहा है। (ति.प./४/२०५७-२०५६); (रा. वा./३/१०/१३/१७३/२४ ); (ह. पु./२/२१७-२१८ +२२७), (त्रि. सा./७४०-७४१)। १। सिद्धायतन | जिनमन्दिर | लोहित* भोगवती २ | गन्धमादन गन्धमादन ६ | स्फटिक भोगहति | देवकुरु* | देवकुरु* | (भोग करा) गन्धव्यास गन्धव्यास ७ | आनन्द | आनन्द (गन्धमालिनी) ६. जम्बूद्वीपके द्रहों व वापियोंके नाम नोट-त्रि. सा. मे सं ३ पर उत्तरकुरु कहा है। और रा. वा. मे || १. हिमवान आदि कुलाचलोंपरलोहितके स्थान पर स्फटिक व स्फटिकके स्थानपर लोहित कहा है। कमसे पद्म, महापद्म, तिगिछ, केसरी, महापुण्डरीक व पुण्ड रीक द्रह है। ति. प. में रुक्मि पर्वतपर महापुण्डरीकके स्थानपर १४. माल्यवान गजदन्त-(मेरुसे कुलगिरिकी ओर ) पुण्डरीक तथा शिखरी पर्वतपर पुण्डरीकके स्थानपर महापुण्डरोक (ति. प./४/२०६०-२०६२ ); ( रा. वा./३/१०/१३/१७३/३०), कहा है। (दे० लोक/३/१४ व लोक/३/६)। (ह. पु./५/२१६-२२०+२२४); (त्रि. सा./७३८)। (ति. प., ह. पु.: त्रि. सा.) (रा.वा.) २. सुमेरु पर्वतके बनोंमें-आग्नेय दिशाको आदि करके (ति.प./ १ सिद्धायतन जिनमन्दिर || सिद्धायतन जिनमन्दिर॥ ४/१६४६,१६६२-१९६३), (रा. वा./३/१०/१२/१७६/२६); ( है. पृ./ २ माक्यवाद | माव्यवाच |२| माल्यवान मान्यवाद ५/३३४-३४६), (त्रि. सा./६२८-६२६), (ज. प./४/११०-११३) । ३. उत्तरकुरु उत्तरकुरु ३उत्तरकुरु उत्तरकुरु कच्छ कच्छ कच्छ कच्छ सौमनसवन | नन्दन वन सौमनसकन नन्दनवन सागर भोगवतीदेवी || विजय |विजय (ति, प.) । (रा.वा.) (ति. प.) | (रा. वा. (सुभोगा) रजत भोगमालिनी |६ सागर भोगवती |१| उत्पलगुरुमा उत्पलगुसमा |७| कज्जला कज्जला देवी | नलिना नलिना | कज्जलप्रभा कज्जलप्रभा ७ पूर्णभद्र पूर्णभद्र रजत भोगमालिनी उत्पन्ना उत्पला श्रीभद्रा श्रीकान्ता ८ सीता सीतादेवी ८ | पूर्णभद्र उत्पलोज्ज्वला उत्पलोज्ज्वला १० श्रीकान्ता श्रीचन्द्रा पूर्णभद्र हरिसह हरिसह 8 सीता ५ भृगा भृगा श्रीमहिता श्रोनिलया ९० हरि | भृगनिभा भृ'गनिभा | १२ श्रीनिलया श्रीमहिता cm ४ | १११ सीता हरि - - जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश भा० ३-६० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016010
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages639
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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