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________________ अवगाहुना १७९ १. अवगाहना सम्बन्धी प्ररूपणाएँ स.बा. क्रम - ३ | वायु ___गर्भज | थलचर " - इन्द्रिय । २. तिथंचगति सम्बन्धी प्ररूपणा ३. पृथ्वी कायिकों आदिकी जघन्य व उत्कृष्ट अवगाहना १. एकेन्द्रियादि तियंचोंकी जघन्य अवगाहना संकेत-सू-सूक्ष्म बा.बादर; अस.- असख्यात । संकेत-असं - असंख्यात; सं.-संख्यात । (मू आ १०८७)। (मू आ./१०६६) (ति प/५/३१८/विस्तार) (ध ४/१,३,२४-३३) काय समास जघन्य (त सा./२/१४५) (गो जी /मूह४/२१५)-ति प.के आधारपर उस्कृष्ट जघन्य अवगाहना मार्गमा पृथिवी घनांगुल/असं. । द्रव्यांगुल/असं, अवगाहना अपेक्षा २ | अप तेज | एकेन्द्रिय धनांगुल/असं जन्मके तृतीयसमयवर्ती सूक्ष्म लब्ध्याप्त निगोद ४ सम्मूर्च्छन्न व गर्भज जलचर, थलचर आदिकी उत्कृष्ट द्विन्द्रिय | घनागुन/स अनुन्धरी त्रीन्द्रिीय घनागुल/स. कुन्थु अवगाहना उपरोक्तxस (मु.आ.१०८४-१०८६) (हपु श६३०)। ४/चतुरिन्द्रिय | उपरोक्तरसं काणमक्षिका ५। पंचेन्द्रिय । सम्मूर्छन तन्दुलमच्छ क्रम मार्गणा २. एकेन्द्रियादि तिर्यचोकी उत्कृष्ट अवगाहना अपर्याप्त पर्याप्त अपर्याप्त । पर्याप्त सकेत-यो-योजन (४ कोश), को -कोश । १ जलचर १ बालिश्त ४-८ धनुष (मू आ /१०७०-१०७१) (ति प/५/३१५-३१८) (ध ४/१,३,२/- २ महा योजना योजन ३३-४५) (त सा./२/१४२-१४४) (गो.जी /मु /६५-६६/२१६- मत्स्य १०००४५००x२५० १५००x२५०४१२५ २२१)-ति प.के आधार पर ४-८ धनुष 3 कोश अवगाहना नभचर ४-८ धनुष अपेक्षा विशेष लम्बाई | चौडाई | मोटाई नोट-गर्भजोंकी अवगाहना सर्वत्र सम्मूर्छनोसे आधी जानना १०००यो १ यो. १यो | कमल | स्वयम्भूरमण द्वीपके मध्यवर्ती ५. जलचर जीवोंकी उत्कृष्ट अवगाहना भागमें उत्पन्न २.१२ यो । ४ यो. १३यो. शंख , , , समुद्र , , (ह पु१/६३०-६३१)। , | ३ को ३/८को ३/१६को. कुम्भी . , द्वोपके अपरभागमें तौर पर मध्य में स्थान | या उत्पन्न लम्बाई चौडाई मोटाई | लम्बाई चौडाई | मोटाई सहस्र पद लवण समुद्र यो. (४६) (२३) १८यो. (E) (81) १यो, ३/४यो | १/श्यो. भवरा " . . . . ११०००यो ५००यो | २५०यो. महा-.., समुद्रके मध्यवर्ती कालोद समुद्र १८ यो. (१) | (४३) ३६यो. (१८) | () मत्स्य भागमें उत्पन्न स्वयंभू रमण ५००यो । (२५०) । (१२५) । १००० १ ५०० । २५० ६. चौदह जीव समासो की अपेक्षा अवगाहना यंत्र सकेत'-सू-सूक्ष्म; बा. बादर; प. पर्याप्त, अप -अपर्याप्त: आ./असं.-आवलीका अस ख्यातवाँ भाग, पल्य/अस.-पल्य+ असंख्यात पूर्व स्थान पूर्व स्थान पृ.- पृथ्वी, ज= जघन्य, x= पूर्व स्थान+9- - *-पूर्व स्थान+ आ./अस पल्य/असं. प्रमाण -(मू आ १०८७); (ति प ५१३१८ विस्तार)(गो.जी./जी R./१७-१०१/२२३-२४३) |स्थान -५ |स्यानम् । स्थान-५ स्थान-५ स्थान%६ ।स्थान-५ स्थानम्५ । स्थान-५ । (स् अप.ज.) (वा.अपज.) । (अप.ज.) | (स्प जो (बा.प.ज.) . (प.ज) । (अप3.) | (प ) सूक्ष्म निगोद बादरवात-६ अप्र.प्रत्येक १२ सदम निगोद१७ बादर वात ३२ अप्रे प्रत्येक ५० तेन्द्रिय:५५ तेन्द्रिय ६० कूल स्थान%६४॥वात तेज-७ बेइंद्री-१३ ॥वात:२०] ॥ तेज ३५ बेन्द्रिय ५१ चौन्द्रिय:५६ चौन्द्रिय ६१ तेज ॥ अमुक तेइन्द्रि-१४ ॥ तेज २३ | ॥ अप-३८ तेन्द्रिय ५२ बन्द्रिय:५७ बोन्द्रय-६२ । ॥ अप४ |" पृथ्वी0 चतुरेन्द्रिः१५ ॥ अप:२६ ॥ पृथ्वी-४१] घौन्द्रिय-५३ अप्रतिष्ठित-५८ अप्र.प्रत्येक-६३) ॥ पृथ्वी५ । निगोद-१० पचेन्द्रिय-१६ पृथ्वी-२०॥ निगोद -४४ पझेन्द्रिय-५४) पञ्चेन्द्रिय-श्न पञ्चेन्द्रिय ६४) प्रतिस्थानवृद्धि | प्र.प्रत्येक प्रतिस्थानवृद्धि प्रतिस्थानवृद्धि प्र.प्रत्येक ४७ प्रतिस्थानवृद्धि प्रतिस्थानवृद्धि प्रतिस्थान वृद्धि क्रमश:/अस. प्रतिस्थानवृद्धि क्रमशःपल्याअस क्रमशःX प्रतिस्थान वृद्धि क्रमश पल्यास क्रमशःपल्यास- क्रमशःपल्यासक्रमश.पल्यास क्रमश । स्थान%D५ । स्थान-६ स्थान५ स्थान -६ (स.अप.3.) (वा अप् 3.) (सूप उ.) | (बा-प) निगोद-१८ | वात- ३३ निगोद-१0 वात:३४ वाल-२१ तेज-३६ वात-२२। तेज-३७ तेज-२४ | अप्% ३० तेज-२५ अप-४० अप:२७ पृथ्वी -४२ अपृ%२८ पृथ्वी-४३ मृथ्वी -३० निगोद्-४५ प्रतिस्थान वृद्धि प्र.प्रत्येक- पृथ्वी-३१ निगोद-४६ प्रर्तिस्थानबृद्धि प्र प्रत्येक-80 el प्रतिस्थानवृद्धि क्रमशx क्रमश प्रतिस्थानवाद क्रमश: X| क्रमश जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश ५ (१०००० - - - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016008
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2003
Total Pages506
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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