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________________ अवगाहना १८० १. अवगाहना सम्ब.पी प्ररूपणाएं - स ६. चौदह जीव समासो की अपेक्षा अवगाहना की मत्स्य रचनाका यंत्र नोट व संकेत '१. रचनाका क्रम (देखो पहले पृष्टपर) जघन्य, मध्यम, उत्कृष्ट स्थान व अवक्तव्य वृद्धि २. एक स्थानको दो मिन्दी-उस स्थान में ४. दो बिन्दी के बीच का अन्तरालप्रति जघन्यसे उत्कृष्ट पर्यन्त अवगाहनाके सर्वभेद अवगाहना स्थान अवक्तव्य वृद्धि । ३. *दो दो स्थानों में बिन्दीप्रति अवगाहना ५. दो बिन्दियो के बीच के स्थान मध्यमस्थान (ति प../३१८ विस्तार), (गो जी./जी प्र/११२/२७४) । २४ .101011८३ २४ २५ २४३०२४०३८108 0५० २५४२८५७०.. .३५ ७ ३१५. 10 सश२५७२४१३५७५४११०४० १५१५ ० ० ६ ६ - - निजxxxxxxxxxxxxxxxxxxXKAMKAKXxuxxxx ३४ . वाज Xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx ३८-उ. . xxxxxxxxxxxxxxxxxxxX KAKSIOXNxxxxxxxxxxxx ४२-उ. . XAXAXAXMIKARKIAXKKAKExxxxyxnxxxnxxxxxyxg . KARNAKXxxsxyxATYAYAXOXXKAIXXXXXXKOMKAMKuxxxAK१० ७० XXKOMXXKXxyxxvxxxxTAKAMALAKXXXRAKXKAxxxpuIONSIDxxry ५४-30 XXKAKxNCHAKKAKIOKKARXKAKKARIXXUxxxXAXXXXXXXXXXXxxxxxx 30 - KOOXXISAXAKCIXXXXXXXXXXXXxxxappyNIYXXXSAAKASOKYAuxxxxxxxxxx२ -30 AAXXINKINAXKOMIONLevarxxwYYAMAJIKMYXXAKASIOXxxOMKAMAKHE 3. MasoomaapKAMKAKUKKnoyMXAXXXXXXDIKHXxuxxAXAXOXxxOXXKIAXNNILAKDi७03. xwpAKKAKKOURNAKAORXXXKOMAXXKKAAMANskaarKaMIKKKURAJJAKO XXXOXxxxnxxpora ७४ -30 अ.अप्रज XousxxxaxxuoxxoooooxxxxmoxxxyasounnXANXXKAMUKIKxpOOOKIKOKAKOOOKKILOMXKOMXMORADHAARAK 23. ASKAXYARIDWARAJYXJxSURJIXXXXXXX3AOUDLXAMMAXXXAXKOMXXXMAKAJOLKIOXXKXXXUxNomuIXXXXIMAKOXxxve . Ax3WOOXXKOORXYUDIOXXJOKYAKAIYYOOKKAJINKaoryxxxxsowxxxxxoxoranxxxxxxXAXMKXKOLAK 2 3 . . XAIXXXINDIKAKKKOOXOOKICKXXXXXXXXXXXXXXXJAKORXXXXXXXMOxJRXXXKAXXKIXXKXXXXKRAAKASHMR 3. KOONXISXXMOINXXXXXROXxxywamyaxxxXKOOLKOSXXXXXJOOKutxKIOUXXXXARXAMINORAKXXXXXXXuxxx . KANXX yoxxxxxxxxxxxxxx xxxxxx Xxxxxxx XXXSAXYKANYAAKKAIAMAKARMOM२६ नि व्यत ते. अप प. बात ते अपु. पृ नि अप्रत्येकxxxxxxxxxxxxxxxxxx २२3. प.अन प्रत्येकाxxxoxxxxxxxxx १६ . बाप.ज प.द्विज. XXM0X30x3xxxxxax १६3. प.वि.अ. -- 1xxnxoxoMMAXMAMIK २० -3. प.च.ज. प.पं.ज. सू.प.ज. . . | १० | 18 . . ३. मनुष्य गति सम्बन्धी प्ररूपणा ४ देवगति सम्बन्धी प्ररूपणा १. भरतादि क्षेत्रों व कर्मभोग भूमिकी अपेक्षा अवगाहना १ भवनवासी देवोकी अवगाहना गणना-२००० धनुषका १ कोश (म आ १०६२) (ति प ३।१७६) (ह पु ४/६८) (ध ४/१,३,२/गा.१८/७ प्रमाण-१. (मू आ १०६३,१०८७), २ (स सि.३/२६-३१),३ (ति. (ज प ११/१३१) (त्रि सा २४६) प४/ गा न ), ४ (रा वा.३/२६-३१/१६२), ५. (ध.४/ क्रम नाम अवगाहना क्रम नाम | अवगाहना १,३,२/४५)६ (ज प.११/५४), ७ (त सा २/१३७) असुरकुमार 1२५ धनुष ६ | उदधिकुमार । १० धनुष्य प्रमाण अधिकरण अवगाहना विद्य तकुमार द्वीपकुमार १० . ति.प.| अन्य क्षेत्र निर्देश भूमि निर्देश सुपर्ण कुमार दिककुमार जघन्य उत्कृष्ट गा | प्रमाण अग्निकुमार १० . स्तनित कुमार | १० , वातकुमार १० । नागकुमार १०, २९,५,७ भरत-ऐरावत कर्म भूमि ३३ हाथ ५२५ धनु २ व्यन्तर देवोकी अवगाहना ४०४ १,२ हैमवत हैरण्य जघन्य भोग ५२५,५०० धनु २००० धनु १ (मू आ १०६२', २ (ति.प ४/७६,१६५२,१६७२), । बत ३१६ १.२ हरि-रम्यक मध्यम भोग २००० धनु ३ (ति प६/८), ४. (ह.पु.४/६८). ५. (ध.४/१३,२/गा.१८/७६), ४००० धनु २२५६ / २,५ विदेह उ कर्मभूमि ५०० धनु ६ (ध ७/२,६,१७ 'गा १/३१६), (ज प ११/१३६) ५०० धनु प्रमाण स.-१,३-६ (किन्नर आदि आठ प्रकार व्यन्तरों की ३३५ / १.२ । देव व उत्तर उत्तम भोग ४००० धनु ६००० धनु अवगाहना १० धनुष है।) २५१३ | ६ । अन्तर्वीप कुभोग ५०० धनु प्रमाण स.२-(मध्य लोकके कूटो व कमलो आदिके स्वामी देव २००० धनु देवियोकी अवगाहना भी १० धनुष बतायी गयी है)। २ सुषमा आदि छ कालोकी अपेक्षा अवगाहना . है ज्योतिषी देवोको अवगाहना (मू आ १०६२) (ति प ७/६१८) (ह पु. ४/६८) (ध ४/१,३, अवसर्पिणी उत्सर्पिणो २(गा १८/७६) (ज.प ११/१३६) (त्रि.सा.२४१) (सर्व ज्योतिष काल जघन्य । उत्कृष्ट | जघन्य । उत्कृष्ट देवोकी अवगाहना ७ घनुष है) निर्देश ति.प/४ अवगाह | अवगाहना 'तिप/अब ति ४ कल्पवासो देवोंकी अवगाहना अव १. मू आ १०६४-१०६८), २. (स.सि.४/२१/२५२); ३. (ति प.८/६४०); गा. ४. (रा.बा.४/२१/८/२३६/२६), ५ (ह.पु ४/६६); ६ (ध.७/२,६,१७/ सुषमासुषमा ३३५/४००० धनु ६००० धनु | १६०२ , २-६/३१६ ३२०), ७.(ज.प.११/३४६-३५२); ८(ज.प.११/२५३). सुषमा ३६६ २००० ४००० ।। (त्रि सा ५४३), १०. (त.सा.२/१३६-१४१) सुषमादुषमा ४०४ | १२५ २००० , दुषमासुषमा १२७७ ७हाथ १२५ प्रमाण स. नाम अवगाह विशेषता १४७५ ३ या ३१ ७हाथ स.३ के बिना सर्व सौधर्म-ईशान ७हाथ | दुषमादुषमा १५३६ | १ , ३१८के बिनासर्व सनत्कुमार-माहेन्द्र ब्रह्म-ब्रह्मोत्तर ५ । प्रमाण गा. .. . अवसर्पिणी वत् 21. अवसपिणीवत दुषमा - जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016008
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2003
Total Pages506
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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